शुक्रवार, 16 मई 2025

इस युद्धक माहौल में एक कहानी ये भी---


आप भी पढ़ें यह संवाद जो क‍ि किताब- 1971: charge of Gorkhas and other stories में दर्ज है। उस युद्ध के बारे में भारतीय सैनिकों के शौर्य की अद्भुत कहानियां हैं इस किताब में।


 1971 के युद्ध में गोरखा राइफल्स के एक कर्नल ने अपने दो युवा साथियों से कहा-अटैक करना है, सुसाइडल है, फ्रंट पर तुम दोनों में से कोई एक ही रहेगा। तुम दोनों में से कौन तैयार है? एक ने कहा- जान की बाजी लगानी है तो मैं फ्रंट टीम में रहूंगा सर। 

बहुत समझाने पर पहला वाला तैयार हुआ कि फ्रंट अटैक में वो नहीं रहेगा। पीछे वाली टीम में रहेगा। दूसरे वाले ने पाकिस्तानी चौकी पर हमले से पहले सिर मुंडा लिया। क्यों मुंडाया, ये किसी को आजतक नहीं पता चल पाया। क्योंकि उस हमले में उनकी शहादत हुई। मौत से पहले कई पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काटी थी उस महावीर ने। उस हमले में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी दौड़ा-दौड़ा कर मारा था।

जब जंग खत्म हुई तो पहला वाला, दूसरे वाले के घर गया। बरेली में। मां ने कहा-मेरा बेटा हमेशा तुम्हारा नाम लेता था। कहता था कि वो मेरे लिए जान की बाजी लगा सकता है। अब मेरा बेटा नहीं है तो तुम ही मेरे बेटे हो।

पहले वाले का नाम था- कैप्टन हिमकार वल्लभ पांडेय (25 साल)

दूसरे वाले का नाम था- कैप्टन प्रवीण कुमार जौहरी (सेना मेडल, मरणोपरांत)-23 साल

कर्नल थे श्याम केलकर।

...हम खुशकिस्मत हैं कि ऐसी सेना है हमारे पास। जय हिंद की सेना।

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

अक्षय तृतीया पर कांची कामकोटि पीठम में एक नए युग की शुरुआत

 




अक्षय तृतीया पर कांची में एक नए युग की शुरुआत, इसके वेद, विद्या और वैद्य सेवाओं ने पिछली शताब्दी में भारत के विकास के विभिन्न आयामों को बदल दिया है। आदि शंकर द्वारा स्थापित 2,500 से अधिक वर्ष पुराने मठ, कांची कामकोटि पीठम में उत्सवों का माहौल है। पीठम के 71वें शंकराचार्य का अभिषेक मठ की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण है। 


70वें शंकराचार्य श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल के शिष्य, इस अखंड वंश में मठ के 71वें शंकराचार्य होंगे। 


आज सुबह कामाक्षी मंदिर में कांची मठ के शिष्य स्वेकार समारोह में वर्तमान आचार्य शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामी ने पीठम के लिए 71वें आचार्य का अभिषेक किया और नए आचार्य का नाम #सत्य_चंद्रशेखरेंद्र_सरस्वती रखा।


नए आचार्य को उनके गुरु विजयेंद्र सरस्वती ने दंड दिया।

#Kanchi #KanchiKamakotiPeetam #SatyaChandrasekharendraSaraswathi

आखिर इस देश में चल क्या रहा है?

 

सोचिए इस देश में तंत्र कितना सड़ा हुआ है। पाकिस्तानी महिलाएं यहां आकर शादी करके बस जा रही हैं। एक पाकिस्तानी महिला CRPF के जवान से शादी करती है। एक पाकिस्तानी है जिसके पास यहां का वोटर ID, आधार कार्ड, राशन कार्ड सब है। कुछ पाकिस्तानी यहां आए थे क्रिकेट देखने यहीं रह गए।


ये सब लिस्ट उनकी है जो डॉक्यूमेंटेड रूप से आएं हैं जिनका सरकार के पास रिकॉर्ड है! उनका क्या जो अवैध रूप से घुसे हैं और जिनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं है इधर। इतने पाकिस्तानी है, बांग्लादेशी भी होंगे, रोहिंग्या भी। जिन 80 करोड़ लोगों को राशन दिया जा रहा था उनमें से ये कितने है वो भी पता लगाना पड़ेगा।


आखिर इस देश में चल क्या रहा है? कोई नियम है या नहीं? ये देश धर्मशाला बन गया है क्या? सरकार इतने दिनों तक क्या कर रही थी? आने जाने वालों को ट्रैक क्यों नहीं किया गया? इन्हें ढूंढ कर वापस क्यों नहीं भेजा गया? लोग 20-20 साल से यहां रह रहे हैं। कोई खबर नहीं किसी को। अगर ये दुर्घटना न होती तो शायद हमें इसका पता भी नहीं चलता।


सोचिए जो 2011 से पहले इस देश में आए होंगे उनको तो जनसंख्या में भी गिना गया होगा। कई ऐसे होंगे जो नौकरी कर रहे होंगे। जिनके पास जमीनें होंगी। सरकार को इन सबको तुरंत वापस भेजना चाहिए, इनके नाम पर जो संपति है उसे जब्त करना चाहिए और इसी तर्ज पर बांग्लादेशियों के लिए भी अभियान चलाइए। ये बहुत घातक हैं, ये सब कैंसर सेल हैं।

रविवार, 27 अप्रैल 2025

जब पार्वती ने पूछा — मैं कौन हूँ?


आज एक धार्म‍िक चर्चा के दौरान ये सार न‍िकला... आप भी लाभान्व‍ित हों इस संवाद से । 

जब पार्वती ने पूछा — मैं कौन हूँ? यह सुनकर इसके उत्तर में शिव ने … माया को नग्न कर दिया 

इस दृश्य का कुछ इस तरह  प्रारंभ हुआ :

रात्रि थी। मौन थी।

चंद्रमा धुंधला था — जैसे कोई प्रश्न हवा में अटका हो।

पार्वती ने पूछा:

"नाथ… मैं कौन हूँ?"

आप मुझे शक्ति कहते हैं, ब्रह्म कहते हैं…...

पर कभी-कभी मैं स्वयं को केवल एक देह, एक पात्र, एक भूमिका जैसा महसूस करती हूँ।

क्या यह मेरा सत्य है या कोई भ्रम?


शिव ने कोई उत्तर नहीं दिया।

कुछ क्षण तक चुप रहे…

फिर बोले:

जिस दिन तुम अपने ‘मैं’ पर प्रश्न करोगी —

उसी दिन तुम उससे मुक्त होने लगोगी।

शिव ने हाथ बढ़ाया:

चलो — आज मैं तुम्हें वह दिखाता हूँ,

जिसे देखकर माया स्वयं अपनी आंखें फेर लेती है।

दृश्य 1: शव साधना

एक श्मशान — राख उड़ रही थी।

चिता बुझ चुकी थी।

एक स्त्री का शव पड़ा था — चेहरा वैसा ही… जैसा पार्वती का।

पार्वती भीतर तक कांप गईं।

क्या यह… वही थी?

शिव बोले:

यह तुम्हारा पहला भ्रम है — देह।

इसे तुम संवारती हो, रचती हो…

और फिर इसे ही ‘स्व’ मान बैठती हो।

"माया की पहली चाल — देह को आत्मा बना देना है।"

दृश्य 2: श्मशान की साक्षी

वहीं एक बूढ़ी माँ रो रही थी — बेटे की चिता जल रही थी।

दूसरी ओर कुछ लोग हँसते हुए गप्पें मार रहे थे।

एक ने कहा:

आज तीसरी चिता है… अब बारी उसकी होगी।

पार्वती की आँखें भर आईं।

शिव ने पूछा:

कौन सच्चा है — वो जो विलाप कर रहा है या वो जो हँस रहा है?

या फिर माया वही है — जो हर रिश्ते को समय का किरायेदार बना देती है?

दृश्य 3: भ्रम का बिंब

अब शिव उन्हें एक काले जल वाले सरोवर के पास ले गए।

पार्वती ने पानी में देखा —

वहाँ उनका प्रतिबिंब था…

लेकिन हर पल बदलता हुआ।

कभी वह वृद्धा, कभी वेश्या, कभी ऋषि, कभी राक्षसी।

"ये क्या है?" — पार्वती की आवाज़ कांप रही थी।

शिव ने उत्तर दिया:

यही तुम हो — जब तुम अपने स्वरूप को भूल जाती हो।

जब तुम अपनी शक्ति को पहचानने के बजाय समाज से पहचान माँगती हो।

माया का दूसरा स्वरूप — 'मैं कौन हूँ' का उत्तर बाहर ढूँढना।

दृश्य 4: शव-स्मृति और आत्म-परछाई

एक तपस्विनी बैठी थी —

निःशब्द, निर्वस्त्र, निर्विकार।

उसकी आँखें बंद थीं, और ललाट पर अग्नि रेखा थी।

पार्वती चौंकीं — यह उन्हीं का प्रतिबिंब था… पर मुक्त।

शिव बोले:

यह तुम हो — जब तुम स्वयं को छोड़ देती हो।

जब तुम 'शक्ति' नहीं, 'शून्य' बन जाती हो —

तब तुम शिव बन जाती हो।

पार्वती ने काँपती आवाज़ में कहा:

मैं शक्ति थी, माया बन गई…

और अब जान गई हूँ —

जो मिटता है, वह मैं नहीं।

जो रोता है, वो माया है।

और जो मौन हो गया है — वही 'मैं' हूँ।

शिव ने उत्तर दिया:

जब तुमने प्रश्न किया —

तभी तुम माया बनी।

और जब तुम मौन हो गई —

तभी तुम ब्रह्म हो गईं।

शास्त्र-प्रमाण ये है क‍ि- 

“शिवः शक्त्या युक्तः…”

— शिवमहापुराण

(शक्ति शिव से भिन्न नहीं — लेकिन भ्रम से उत्पन्न होती है)

“मायैव सर्वमखिलं ह्यनात्मा…”

— शिवगीता

(जो ‘मैं’ नहीं है, वही सबसे बड़ी माया है)

“ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या…”

— अद्वैत वेदांत

जब पार्वती ने खुद से पूछा — मैं कौन हूँ…

तो माया चुप हो गई।

“माया वही है —

जो तुम हो ही नहीं…...

फिर भी हर दिन ‘वही’ बनने की कोशिश करते हो।”

साभार - 𝗠𝗮𝗻𝗶𝘀𝗵 𝗗𝗮𝘁𝘁 𝗧𝗶𝘄𝗮𝗿𝗶

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने आज स‍िंधु के दूसरे चैनल को भी पूरी तरह से बंद कर दिया

 कुल चार चैनलों के द्वारा सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान में जाता है




वीड‍ियो: साभार एएनआई
भारत में दूसरे चैनल को भी पूरी तरह से बंद कर दिया और उसका वीडियो रिलीज कर दिया पाकिस्तान के विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अभी पाकिस्तान को सिंधु नदी में जितना पानी मिल रहा है यदि भारत सिर्फ 10% बंद कर दे तो पाकिस्तान की 30% जमीन बंजर हो जाएगी और अगर भारत 20% बंद कर दे तो पाकिस्तान के मुल्तान लाहौर जैसे कई शहर पीने के पानी के कमी से जूझने लगेंगे और अगर आधा बंद कर दे तो पाकिस्तान में कोई खेती नहीं होगी पाकिस्तान में हाहाकार मच जाएगा और बिना एक मिसाइल गिराये भारत लाखों लोगों का कत्लेआम कर देगा सिंधु नदी समझौते की प्रस्तावना में लिखा था कि यह समझौता एक सौहार्दपूर्ण वातावरण के लिए किया जा रहा है भारत और पाकिस्तान के बीच में सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहे इसके लिए नदी जल बटवारा समझौता जरूरी है अब विश्व बैंक को भारत ने बता दिया फिर जब वातावरण सौहार्द पूर्ण नहीं रहा तो हम समझौता सस्पेंड करने और रद्द करने का अधिकार रखते हैं कल तक जो पाकिस्तानी चिल्ला रहे थे कि भारत समझौते को रद्द नहीं कर सकता उन्होंने शायद यह सौहार्दपूर्ण वातावरण रखने की कंडीशन नहीं पढ़ी थी क्योंकि अभी गर्मी है भारत के क्षेत्र के सिंधु नदी बेसिन के सारे रिजर्वायर सूखे हुए हैं तो भारत उन रिजर्वायर को भर रहा है उम्मीद है भविष्य में सिंधु नदी को सतलज से जोड़ दिया जाएगा और सतलज को अगर श्रीगंगानगर होते हुए महीसागर नदी से जोड़ दिया जाए तो पंजाब राजस्थान मध्यप्रदेश गुजरात जैसे काफी एरिया को खूब पानी मिल सकता है

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

क्या सुप्रीम कोर्ट वक्फ बिल को निरस्त कर सकता है, समझें संवैधानिक प्रावधान


 क्या वक्फ संशोधन बिल असंवैधानिक है? असंवैधानिक कहने का अर्थ है कि यह देश के संविधान के अनुसार नहीं है, यानी इसमें जो बातें कही गई हैं, वह देश के कानून के विपरीत हैं. इसी बात को आधार बनाकर सांसद मोहम्मद जावेद और असदुद्दीन ओवैसी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. अब सवाल यह है कि जिस विधेयक को संसद ने पूरी संवैधानिक व्यवस्था के साथ संसद से पास किया है, क्या सुप्रीम कोर्ट उस पर स्टे करेगा? 

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को संसद ने पास कर दिया है. इस बिल को लोकसभा ने 2 अप्रैल और राज्यसभा ने 3 अप्रैल को पारित किया. यह विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त करके कानून का रूप ले लेगा. विधेयक के कानून बनने की जो प्रक्रिया होती है, उसपर यह विधेयक पूरी तरह से सटीक बैठता है, बावजूद इसके इसे असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है. इस परिस्थिति में देशवासियों के मन में यह सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इस बिल को निरस्त कर सकता है? इस सवाल  का जवाब हमारा संविधान देता है. 
कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के अधिकारों पर क्या कहता है संविधान 
भारतीय लोकतंत्र जिन स्तंभों पर खड़ा है वे हैं-कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका. भारत का संविधान लिखित है और उसमें इन तीनों स्तंभों की भूमिका और अधिकार स्पष्ट तौर पर बताए गए हैं. संविधान ने तीनों स्तंभों के कार्यों का बंटवारा किया है और यह भी सुनिश्चित किया है कि तीनों स्तंभों में कभी टकराव ना हो और ऐसा भी ना हो कि किसी की शक्ति अत्यधिक और किसी की कम हो जाए. संविधान ने तीनों स्तंभों को जो कार्य दिए हैं वे इस प्रकार हैं-
विधायिका यानी वह संस्था जो कानून बनाती है
कार्यपालिका यानी वह संस्था जो कानून को देश में लागू करती है
न्यायपालिका इस बात की निगरानी करती है कि जो कानून बने हैं, उनका सही से पालन हो रहा है या नहीं

देश के इन तीनों स्तंभों के बीच शक्ति का संतुलन भी बनाया गया है. विधायिका कार्यपालिका को प्रश्न पूछकर नियंत्रित करती है और उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ला सकती है. जबकि कार्यपालिका विधायिका को भंग करने की क्षमता रखती है. वहीं न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करता है, ताकि संविधान के अनुसार काम हो.
वक्फ बिल के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है?
वक्फ बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जो याचिकाएं दाखिल की गई हैं, उसमें संविधान यानी देश के कानून के अनुसार कोई गलती नहीं हुई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का काम ही है संविधान की व्याख्या करना. अब सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट उस बिल के साथ क्या करेगा, जिसे संसद पास कर चुकी है? इस संबंध में विधायी मामलों के जानकार अधोध्या नाथ मिश्रा ने बताया कि संविधान में यह व्यवस्था है कि ना तो सुप्रीम कोर्ट और ना ही संसद यानी ना तो न्यायपालिका और ना ही विधायिका एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप करते हैं. इस लिहाज से जब किसी विधेयक को संसद पास कर चुकी है, तो सुप्रीम कोर्ट उसे निरस्त कर देगा, यह संभव नहीं है. हां, यह हो सकता है कि बिल के किसी खास क्लॉज यानी कंडिका पर आपत्ति हो, तो सुप्रीम कोर्ट उसे देख सकता है और अगर उसे उचित लगे तो वह उसपर कुछ सुझाव विधायिका को दे सकता है. लेकिन यह सुझाव होगा, जजमेंट नहीं. यह संभव नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ बिल पर स्टे लगा दे, क्योंकि वक्फ बिल को पूरी तरह संविधान सम्मत प्रक्रियाओं के तहत लाया गया है. अगस्त 2024 में यह बिल संसद में पेश किया गया, उसके बाद इसे विस्तृत चर्चा के लिए जेपीसी के पास भेजा गया. जेपीसी ने इस बिल पर कई तरह के सुझावों पर गौर किया और फिर उसमें बदलाव भी किया. जेपीसी की सिफारिशों के साथ बिल संसद में फिर आया और संसद द्वारा पास किया गया. बिल पर बहस हुई है, सभी पार्टियों को बोलने का मौका भी मिला है, इसलिए इसे पेश करने की जो व्यवस्था है वह पूरी तरह न्याय सम्मत है. 
-Legend News

मंगलवार, 25 मार्च 2025

जूडिशियरी में बहुत पुराना है अंकल जज सिंड्रोम, जस्टिस वर्मा विवाद के बाद फ‍िर छिड़ी बहस


 दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 14 मार्च 2025 को करोड़ों रुपए के अधजले नोट बरामद होने के बाद अंकज जज सिंड्रोम एक बार फिर बहस का केंद्र बन गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोस‍िएशन ने “अंकज जज सिंड्रोम” पर तीखा प्रहार किया है. 

जस्टिस यशवंत वर्मा के सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट फिर से वापस भेजे जाने के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू हो गई है. इस हड़ताल के साथ ही पूरे देश के न्यायालयों में एक बार फिर से “अंकल जज सिंड्रोम” और न्यायिक सुधारों पर तीखी बहस शुरू हो गई है.

न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं होने और इनमें परिवारवाद को वरीयता दिए जाने को “अंकल जज सिंड्रोम” कहते हैं. जब जज बनाने के लिए अधिवक्ताओं के नाम प्रस्तावित किए जाते हैं तो किसी भी स्तर पर किसी से कोई राय नहीं ली जाती.

ऐसे में जिन लोगों का नाम प्रस्तावित किया जाता है. उनमें से कई पूर्व न्यायाधीशों के परिवार से होते हैं या उनके संबंधी होते हैं. विशेष पहुंच के कारण इनके नामों को प्रस्तावित किया जाता है, जो शुचिता और स्वतंत्रता के हित में नहीं होता.

पारदर्शिता के अभाव में न्यायपालिका में नियुक्तियां जब निजी संबंधों और प्रभाव के आधार पर की जाती हैं तो न्यायपालिका में इस परंपरा को 'अंकल जज सिंड्रोम' कहा जाता है. “अंकल जज सिंड्रोम” न्यायपालिका में फैले कथित भाई-भतीजावाद और पक्षपात को दर्शाता है. इससे उस सिद्धांत को ठेस पहुंचती है कि न्याय अंधा होना चाहिए.

भारतीय विधि आयोग ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में उच्च न्यायालयों में ‘अंकल जजों’ की नियुक्ति के मामले का उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि जिन जजों के परिजन किसी उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे हैं, उन्हें उसी उच्च न्यायालय में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी के अनुसार  अंकल जज सिंड्रोम का झगड़ा बहुत पुराना है. देश में डेमोक्रेसी के लिए जरूरी है कि न्यायपालिका ट्रांसपैरेंट हो. अंकल जज सिंड्रोम की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है. हमने तो कही नहीं.

न्यायपालिका में साफ सुथरी पारदर्शी व्यवस्था हो जहां जनता को शक बिल्कुल न हो. उसे न्याय मिले. सामान्य घरों से आने वाले अधिवक्ताओं के साथ कोई भेदभाव न हो. जजों की नियुक्तियों में पारदर्शिता हो. यही इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन चाहता है. अंकल जज सिंड्रोम जूडिशियरी में बहुत पुरानी है. सीनियर अधिवक्ता और जज अपने बच्चों और रिश्तेदारों को सेट करने के चक्कर में दूसरे योग्य और विद्वान अधिवक्ताओं का हक मारते हैं. जज जो कोलेजियम में हैं वो अपने बच्चों और रिश्तेदारों के नाम को प्रस्तावित करते हैं.

कोलेजियम सिस्टम शुरू में तो ठीक रहा पर फिर गड़बड़ हो गया. जजों की नियुक्ति सरकार के हाथ में भी नहीं देनी चाहिए. यह लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है. पिछले दिनों उच्च न्यायालयों के जो निर्णय आए वो जूडिशियरी के लिए और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं. 

ऐसे में अगर देश की न्यायपालिका भी बिक गई तो देश में गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा. भाई–भतीजावाद से न्यायपालिका और आम आदमी को बहुत नुकसान हो रहा है. लोगों को समय से न्याय नहीं मिल रहा. ज्यूडिशरी में तीन-चार पीढ़ियों से जज का बेटा जज बन रहा है और अधिवक्ता का बेटा अधिवक्ता बन रहा है. नए लोगों को मौके नहीं मिल पा रहे हैं. इसमें भाई भतीजा वाद चल रहा है. इससे लोकतंत्र को नुकसान हो रहा है.

इससे तमाम ज्ञानवान और विद्वान अधिवक्ताओं को मौके नहीं मिल रहे हैं. किसी भी आम अधिवक्ता को जज बनने का मौका ही नहीं मिलता. अंकल जज सिंड्रोम को लेकर के कई बार आंदोलन भी किया गया है, लेकिन ज्यूडिशरी में कोई फर्क नहीं पड़ा.

इसको तभी खत्म किया जा सकता है जब कोलेजियम सिस्टम को बिल्कुल खत्म कर दिया जाए. कोलेजियम सिस्टम से ना होकर, नियुक्ति का दूसरा रास्ता निकाला जाना चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोस‍िएशन के अनुसार जिनका फैमिली बैकग्राउंड होता है. जिनके घर में कोई जज होता है उनके बच्चों को एक दो साल में सैकड़ों बड़े-बड़े केसे दे दिया जाता है. आम एडवोकेट के खाते में कई बार एक केस भी नहीं होता है.

उसे अपनी जमीन तैयार करने में 8 से 10 साल लग जाते हैं. मेरा कहना है कि जिस हाईकोर्ट में यदि किसी का पिता या बेटा जज हो उसको उसी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस से रोका जाना चाहिए. कोलेजियम व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए. जजों की नियुक्ति एकदम पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट्स का कहना है कि न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता न होने से न्याय की आस लेकर बैठे लोगों को निराशा हाथ लगती है. जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एक आम आदमी की तरह ही कार्रवाई करनी चाहिए.

कोलेजियम की व्यवस्था का ही खोट है कि जस्टिस यशवंत वर्मा जैसे लोग जज बन जाते हैं और उनके घर करोड़ों रुपए बरामद होते हैं. ऐसे में समाज का देश का भरोसा न्यायपालिका से उठ जाएगा. जनता हमारे पास आती है. उसे न्याय नहीं मिल पाएगा तो लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगेगा.

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

#MahaShivratri : शिव का नटराज चित्रण एक कॉस्मिक नर्तक का रूप है

 #Mahashivratri #MahaShivratriSpecial


शिव का नटराज चित्रण एक कॉस्मिक नर्तक का रूप है जो लास्य व तांडव के अपने दोहरे नृत्यों के माध्यम से दुनिया को नष्ट करके फिर से बनाने की शक्ति रखते हैं।
क्वांटम यांत्रिकी अनुसार शिव का नृत्य उप-परमाणु पदार्थ का नृत्य जैसा है, यह नृत्य सृजन और विनाश का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड के हर स्तर पर होता रहता है.
क्वांटम यांत्रिकी के मुताबिक, इलेक्ट्रॉन एक स्थिर इकाई नहीं है, बल्कि एक संभाव्यता तरंग है. इसी तरह, निर्वात खाली नहीं है, बल्कि आभासी कणों का एक उबलता हुआ समुद्र है.
शिव का तांडव, ब्रह्मांड को चलाने वाली मूलभूत शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है. शिव का तांडव, सृजन, संरक्षण, और विनाश की एक ब्रह्मांडीय प्रक्रिया है. शिव का तांडव, क्वांटम यांत्रिकी की विरोधाभासी दुनिया को भी प्रतिध्वनित करता है.
स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में स्थित दुनिया के सबसे बड़े भौतिकी प्रयोगशाला 'सर्न' के बाहर एक विशाल नटराज की मूर्ति है. यह मूर्ति भारत सरकार ने ही तोहफ़े में दी थी.

हिंदू संस्कृति में शिव के नटराज रूप को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के नृत्य ने ब्रह्मांड के अस्तित्व का निर्माण किया। यह मूर्ति पूरी तरह से भारत में एक विशेष खोई हुई मोम तकनीक से बनाई गई है जिसमें गर्म धातु को मोम के मॉडल में डाला जाता है जो फिर इस प्रक्रिया में खो जाती है। नटराज की मूर्ति को अक्सर नकारात्मक ऊर्जा और आक्रामकता का वाहक माना जाता है, जिसके कारण लोग इसे अपने घर में रखने के बारे में सोचते हैं। नटराज के प्रतीकवाद के दो पहलू हैं, उन्हें उनके दिव्य नृत्य के लिए पूजा जाता है जो विनाश की शक्तियों को शांत करता है जबकि साथ ही वे अपने आक्रामक और भयंकर ब्रह्मांडीय तांडव के लिए भी जाने जाते हैं। भगवान प्रसन्नता और क्रोध दोनों ही समय में तांडव करते हैं, इसलिए नटराज की मूर्ति को अपने घर के अलावा घर में रखना भी सही रहता है। घर में नटराजमूर्ति रखने के लिए सबसे सही स्थान उत्तर-पूर्व दिशा है जिसे ईशान्य कहते हैं। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि नटराज की मूर्ति को अलग तरीके से रखा जाए और अन्य देवताओं के साथ नहीं। नटराज का प्रतीकवाद नटराज का एक विशिष्ट प्रतीकात्मक स्वरूप है, जो एक ब्रह्मांडीय नर्तक के रूप में सभी तत्वों को गहन महत्व के साथ दर्शाता है: डमरू (ढोल):
शिव अपने ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू धारण करते हैं जो समय के साथ सृष्टि की ध्वनि का प्रतीक है। डमरू द्वारा उत्पन्न कंपन सृष्टि की उपस्थिति को दर्शाता है, जिसे ब्रह्मांड की ध्वनि कहा जाता है। ज्वाला (अग्नि):
अपने ऊपरी बाएं हाथ में, देवता एक ज्वाला धारण करते हैं जो ब्रह्मांड के विनाश और परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती है। उनके हाथ में अग्नि ब्रह्मांड के विघटन को दर्शाती है। अभय मुद्रा:
शिव के निचले हाथ योगिक अभय मुद्रा में उठे हुए हैं जो सुरक्षा और आराम का संकेत है। ऐसा कहा जाता है कि यह अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हुए भय को दूर करता है। उठा हुआ पैर:
नटराज का उठा हुआ पैर अपने भक्तों की रक्षा का मार्ग दर्शाता है तथा उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करता है। राक्षस अपस्मार:
शिव के दाहिने पैर के नीचे राक्षस राजा अपस्मार है जो अज्ञानता और अहंकार के परिणाम को दर्शाता है। शिव द्वारा राक्षस को अपने पैर के नीचे कुचलना अज्ञान पर ज्ञान की जीत को दर्शाता है। अग्नि वलय:
नटराज के चारों ओर अग्नि वलय है जिसे प्रभामंडल कहते हैं। प्रभामंडल जन्म, पुनर्जन्म और फिर मृत्यु के अंतहीन चक्र को दर्शाता है। यह देवता की दिव्य चमक को दर्शाता है। नटराज प्रतिमा की उत्पत्ति शिव के नटराज अवतार की उत्पत्ति 5वीं शताब्दी में हुई थी। नटराज की सबसे पुरानी पत्थर की मूर्तियाँ अजंता एलोरा की गुफाओं और बादामी की गुफाओं में देखी जाती हैं। चोल राजवंश की कांस्य प्रतिमाएँ कुछ अलग मुद्राओं और प्रतीकात्मकता में हैं। नटराज के आनंद तांडव का कांस्य चित्रण 7वीं से 9वीं शताब्दी के पल्लव राजवंश में भी पाया जा सकता है। 9वीं शताब्दी की प्राचीन पुरातत्व खोजों में मध्य प्रदेश के उज्जैन में लाल पत्थर की नटराज की प्रतिमा प्रदर्शित की गई है, साथ ही कश्मीर से भी कुछ ऐसी प्रतिमाएँ मिली हैं, जिनमें अनूठी प्रतिमाएँ हैं। नटराज की प्राचीन प्रतिमाएँ धार्मिक प्रथाओं का मुख्य आकर्षण थीं, जो आज भी जारी हैं।

- अलकनंदा स‍िंंह

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

सलाम सोलंकी जी, आप हो इस देश के हीरो


 "आसाराम को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले वकील पी .सी. सोलंकी के इस आत्मकथन को पढ़कर मेरे रोयें खड़े हो गए, समझ आया कि ये देश किसके सहारे चल रहा है। 

सलाम सोलंकी जी, आप हो इस देश के हीरो! 

(और जो हीरो नहीं है उनके नाम जानने हों तो उन नामी गिरामी वकीलों की लिस्ट पढ़ लेना जिन्होंने आसाराम की पैरवी की) 

15 मिनट में जज ने अपना फैसला सुना दिया था. वो 15 मिनट मेरी जिंदगी के सबसे भारी 15 मिनट थे. एक-एक पल जैसे पहाड़ की तरह बीत रहा था. पूरे समय मेरी आंखों के सामने पीड़िता और उसके पिता का चेहरा घूमता रहा.जज जब फैसला सुनाकर उठे तो लोग मुझे बधाइयां देने लगे. मेरा गला रुंध गया था. मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी. मैं वकील हूं, मुकदमे लड़ना, कोर्ट में पेश होना मेरा पेशा है. लेकिन जिंदगी में आखिर कितने ऐसे मौके आते हैं, जब आपको लगे कि आपके होने का कोई अर्थ है. उस क्षण मुझे लगा था कि मेरे होने का कुछ अर्थ है. मेरा जीवन सार्थक हो गया.मेरा जन्‍म राजस्‍थान के एक साधारण परिवार में हुआ था. घर में तीन बहनें थीं और आर्थिक तंगी. पिता रेलवे में मैकेनिक थे.मैंने भी बचपन से सिलाई का काम किया है. मां एक दिन में 30-40 शर्ट सिलती थीं. पिता बेहद साधारण थे और मां अनपढ़. लेकिन दोनों की एक ही जिद थी कि बच्‍चों को पढ़ाना है और सिर्फ लड़के को नहीं, लड़कियों को भी. मेरी तीनों बहनों ने आज से 30 साल पहले पोस्‍ट ग्रेजुएशन किया और नौकरी की. मेरी एक बहन नर्स और एक टीचर है.जब मैंने इस पेशे में आने का फैसला किया तो मेरे गुरु ने कहा था कि वकालत बहुत जिम्‍मेदारी का काम है. इस पेशे की छवि समाज में बहुत अच्‍छी नहीं, लेकिन अपनी छवि हम खुद बनाते हैं और अपनी राह खुद चुनते हैं. हमेशा ऐसे काम करना कि सिर उठाकर चल सको और किसी से डरना न पड़े.

जब मैंने आसाराम के खिलाफ पीडि़ता की तरफ से यह मुकदमा लड़ने का फैसला किया तो बहुत धमकियां मिलीं. पैसों का लालच दिया गया. तमाम कोशिशें हुईं कि किसी भी तरह मैं ये मुकदमा छोड़ दूं. लेकिन हर बार मुझे वह दिन याद आता, जब पीड़िता के पिता पहली बार मुझसे मिलने कोर्ट आए थे. साथ में वो लड़की थी. बेहद शांत, सौम्‍य और बुद्धिमान. उसकी आंखें गंभीर थीं और चेहरे पर बहुत दर्द. पिता बेहद निरीह थे, लेकिन इस दृढ़ निश्‍चय से भरे हुए कि उन्‍हें यह लड़ाई लड़नी ही है.मैं यह लड़ाई इसलिए लड़ पाया क्‍योंकि पीड़िता और उसका परिवार एक क्षण के लिए अपने फैसले से डिगा नहीं. लड़की ने बहुत बहादुरी से कोर्ट में खड़े होकर बयान दिया. 94 पन्‍नों में उसका बयान दर्ज है. तकलीफ बहुत थी, लेकिन वो पर्वत की तरह अटल रही. लड़की की मां 19 दिनों तक कोर्ट में खड़ी रही और 80 पन्‍नों में उनका बयान दर्ज हुआ. पिता रोते रहे और बोलते रहे. 56 पन्‍नों में उनका बयान दर्ज हुआ.जब एक बेहद साधारण सा परिवार इतने ताकतवर आदमी के खिलाफ इस तरह अटल खड़ा था तो मैं कैसे हार मान सकता था. 2014 में जिस दिन वकालतनामे पर साइन किया, उस दिन के बाद से यह मुकदमा ही मेरी जिंदगी हो गया.

 साढ़े चार साल ट्रायल चला. इन साढ़े चार सालों में मैं रोज कोर्ट गया. 8 बार सुप्रीम कोर्ट में पेशी हुई. 1000 बार से ज्‍यादा ट्रायल कोर्ट में पेश हुआ.जितना मामूली पीड़िता का परिवार था, उतना ही मामूली वकील था मैं. इस तरफ मैं था और दूसरी तरफ थे देश की राजधानी में बैठे कद्दावर वकील. सबसे पहले आसाराम को जमानत दिलवाने के लिए आए राम जेठमलानी. जमानत याचिका रद्द हो गई. फिर आए केटीएस तुलसी, लेकिन आसाराम को कोई राहत नहीं मिली. फिर आए सुब्रमण्‍यम स्‍वामी. न्‍यायालय में 40 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन फैसला हमारे पक्ष में आया. फिर आए राजू रामचंद्रन लेकिन जमानत याचिका फिर खारिज हो गई. सिद्धार्थ लूथरा ने अभियुक्‍त की तरफ से कोर्ट में पैरवी की. इस केस में आसाराम की तरफ से देश का तकरीबन हर बड़ा वकील पेश हुआ. पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने आसाराम की पैरवी की. सुप्रीम कोर्ट के जज यूयू ललित आए. सलमान खुर्शीद, सोली सोराबजी, विकास सिंह, एसके जैन, सबने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. तीन बार सुप्रीम कोर्ट से आसाराम की जमानत याचिका खारिज हुई. कुल छह बार अभियुक्‍त ने जमानत की कोशिश की और हर बार फैसला हमारे पक्ष में आया.

लोग कहते हैं, तुम्‍हें डर नहीं लगता. मैं कहता हूं, मेरी 80 साल की मां और 85 साल के पिता को भी डर नहीं लगता. जब आप सच के साथ होते हैं तो मन, शरीर सब एक रहस्‍यमय ऊर्जा से भर जाता है. सत्‍य में बड़ा बल है. आत्‍मा की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं. उनके पास धन, वैभव, सियासत का बल था, मैं अपनी आत्‍मा के बल पर खड़ा रहा. मेरा परिवार मेरे साथ था. मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं हैं. वे बस इतना समझती हैं कि एक आदमी ने गलत किया. बच्‍ची को न्‍याय मिले. मुझे सच की लड़ाई लड़ता देख मेरे पिता की बूढ़ी आंखों में गर्व की चमक दिखाई देती है. वे मुझसे भी ज्‍यादा निडर हैं. 85 साल की उम्र में भी बिलकुल स्‍वस्‍थ. तीन मंजिला मकान की अकेले सफाई करते हैं. पत्‍नी खुश है कि मैं एक लड़की के हक के लिए लड़ा.

(यह लेख पी.सी. सोलंकी के साथ बातचीत पर आधारित है.)


25 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक आसाराम जितना खरीद सकते थे खरीद रहे थे। 

उन दिनों सारा हिंदुत्व इसे अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत सनातन संस्कृति पर हमला बता रहा था। पीड़िता और पीड़िता के पिता के पहले मददगार बने, एसीपी लांबा और दूसरे वकील पीसी सोलंकी।

आसाराम के गुर्गो बनाम भक्तों द्वारा अनेक गवाहों पर जानलेवा हमले करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार देने के बावजूद पीसी सोलंकी हिमालय की तरह अटल रहे।

इन्हें हृदय से नमन

साभार: 

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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

आज नर्मदा जयंती पर... चिरकुंवारी नर्मदा की अधूरी प्रेम-कथा पढ़‍िये... श्याम सुन्दर भट्ट की कलम से


 कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया लेकिन क्या सचमुच वह गुस्से की आग में चिरकुवांरी बनी रही या फिर प्रेमी शोणभद्र को दंडित करने का यही बेहतर उपाय लगा कि आत्मनिर्वासन की पीड़ा को पीते हुए स्वयं पर ही आघात किया जाए। नर्मदा की प्रेम-कथा लोकगीतों और लोककथाओं में अलग-अलग मिलती है लेकिन हर कथा का अंत कमोबेश वही कि शोणभद्र के नर्मदा की दासी जुहिला के साथ संबंधों के चलते नर्मदा ने अपना मुंह मोड़ लिया और उलटी दिशा में चल पड़ीं।                     

सत्य और कथ्य का मिलन देखिए कि नर्मदा नदी विपरीत दिशा में ही बहती दिखाई देती है। 

 यथार्थ में नर्मदा, सोन, और महानदी तीनों त्रिकूट पर्वत के तीन शिखरों से जन्म लेती हैं। इनके उद्गम स्थल की आपसी दूरी बहुत कम है परंतु महानदी पूर्व में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है । सोन  जिसे सोनभद्र कहते हैं वह उत्तर में बहती है और गंगा में मिल जाती है । और नर्मदा इन सबसे अलग पश्चिम में बहती है ।और अरब सागर में मिलती है ।

नर्मदा की सहायक नदियां भी छोटी-छोटी हैं और यह विंध्याचल और सतपुड़ा के बीच में अपनी घाटी बनाती हुई बहती है ।

इस भौगोलिक तथ्यों को ही विभिन्न कथाओं में प्रतीकों के माध्यम से बताया गया  हैं

नर्मदा और सोन एक स्थान पर तो बहुत निकट है और शायद  यह उसे देखकर ही या कहा जाता है कि नर्मदा सोन से मिलने आ रही थी ।और जुहेला को  उसके साथ देख कर पलट गई ।

जोहेला एक छोटी नदी है जो उसी स्थान पर सोन से मिलती है जहां नर्मदा बहुत निकट है।।

कथा 1 : नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला(यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) में अधिक है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई। शोण भद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह भी नर्मदा के पीछे भागा यह गुहार लगाते हुए' लौट आओ नर्मदा'... लेकिन नर्मदा को नहीं लौटना था सो वह नहीं लौटी। 

अब आप कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि सचमुच नर्मदा भारतीय प्रायद्वीप की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है यानी पूर्व से पश्चिम की ओर। कहते हैं आज भी नर्मदा एक बिंदू विशेष से शोण भद्र से अलग होती दिखाई पड़ती है। कथा की फलश्रुति यह भी है कि नर्मदा को इसीलिए चिरकुंवारी नदी कहा गया है और ग्रहों के किसी विशेष मेल पर स्वयं गंगा नदी भी यहां स्नान करने आती है। इस नदी को गंगा से भी पवित्र माना गया है। 

मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है -‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।’ एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस तरह है।


गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।। 


कथा 2 : इस कथा में नर्मदा को रेवा नदी और शोणभद्र को सोनभद्र के नाम से जाना गया है। नद यानी नदी का पुरुष रूप। (ब्रह्मपुत्र भी नदी नहीं 'नद' ही कहा जाता है।) बहरहाल यह कथा बताती है कि राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। राजा मेखल ने अपनी अत्यंत रूपसी पुत्री के लिए यह तय किया कि जो राजकुमार गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प उनकी पुत्री के लिए लाएगा वे अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ संपन्न करेंगे। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल ले आए अत: उनसे राजकुमारी नर्मदा का विवाह तय हुआ। 

नर्मदा अब तक सोनभद्र के दर्शन ना कर सकी थी लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर मन ही मन वह भी उसे चाहने लगी। विवाह होने में कुछ दिन शेष थे लेकिन नर्मदा से रहा ना गया उसने अपनी दासी जुहिला के हाथों प्रेम संदेश भेजने की सोची। जुहिला को सुझी ठिठोली। उसने राजकुमारी से उसके वस्त्राभूषण मांगे और चल पड़ी राजकुमार से मिलने। सोनभद्र के पास पहुंची तो राजकुमार सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझने की भूल कर बैठा। जुहिला की ‍नियत में भी खोट आ गया। राजकुमार के प्रणय-निवेदन को वह ठुकरा ना सकी। इधर नर्मदा का सब्र का बांध टूटने लगा। दासी जुहिला के आने में देरी हुई तो वह स्वयं चल पड़ी सोनभद्र से मिलने।

वहां पहुंचने पर सोनभद्र और जुहिला को साथ देखकर वह अपमान की भीषण आग में जल उठीं। तुरंत वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी फिर कभी ना लौटने के लिए। सोनभद्र अपनी गलती पर पछताता रहा लेकिन स्वाभिमान और विद्रोह की प्रतीक बनी नर्मदा पलट कर नहीं आई। 

अब इस कथा का भौगोलिक सत्य देखिए कि जैसिंहनगर के ग्राम बरहा के निकट जुहिला (इस नदी को दुषित नदी माना जाता है, पवित्र नदियों में इसे शामिल नहीं किया जाता) का सोनभद्र नद से वाम-पार्श्व में दशरथ घाट पर संगम होता है और कथा में रूठी राजकुमारी नर्मदा कुंवारी और अकेली उल्टी दिशा में बहती दिखाई देती है। रानी और दासी के राजवस्त्र बदलने की कथा इलाहाबाद के पूर्वी भाग में आज भी प्रचलित है। 

कथा 3 : कई हजारों वर्ष पहले की बात है। नर्मदा जी नदी बनकर जन्मीं। सोनभद्र नद बनकर जन्मा। दोनों के घर पास थे। दोनों अमरकंट की पहाड़ियों में घुटनों के बल चलते। चिढ़ते-चिढ़ाते। हंसते-रुठते। दोनों का बचपन खत्म हुआ। दोनों किशोर हुए। लगाव और बढ़ने लगा। गुफाओं, पहाड़‍ियों में ऋषि-मुनि व संतों ने डेरे डाले। चारों ओर यज्ञ-पूजन होने लगा। पूरे पर्वत में हवन की पवित्र समिधाओं से वातावरण सुगंधित होने लगा। इसी पावन माहौल में दोनों जवान हुए। उन दोनों ने कसमें खाई। जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ने की। एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की।

एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र ने सामने नर्मदा की सखी जुहिला नदी आ धमकी। सोलह श्रृंगार किए हुए, वन का सौन्दर्य लिए वह भी नवयुवती थी। उसने अपनी अदाओं से सोनभद्र को भी मोह लिया। सोनभद्र अपनी बाल सखी नर्मदा को भूल गया। जुहिला को भी अपनी सखी के प्यार पर डोरे डालते लाज ना आई। नर्मदा ने बहुत कोशिश की सोनभद्र को समझाने की। लेकिन सोनभद्र तो जैसे जुहिला के लिए बावरा हो गया था। 

नर्मदा ने किसी ऐसे ही असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना। कहते हैं तभी से नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली। सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा। सोनभद्र को दुख हुआ। बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी। उसने पुकारा- 'न...र...म...दा...रूक जाओ, लौट आओ नर्मदा। 

लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया। युवावस्था में ही सन्यासिनी बन गई। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। पर वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं। मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है। 

नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं। भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई।

नर्मदा की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुवांरी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है। कहने को वह नदी रूप में है लेकिन चाहे-अनचाहे भक्त-गण उनका मानवीयकरण कर ही लेते है। 

पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी इस भावना को बल प्रदान करता है और वे कह उठते हैं नमामि देवी नर्मदे.... !

साभार: श्याम सुन्दर भट्ट

बुधवार, 22 जनवरी 2025

यूपी में बनेगा देश का पहला हिंदी साहित्य म्यूजियम, संरक्षित होगी साहित्यकारों की विरासत


 वाराणसी। धर्मनगरी काशी में देश का पहला हिंदी संग्रहालय बनने जा रहा है, जहां पर हिंदी से जुड़े हुए बड़े साहित्यकारों की यादों, उनके दस्तावेजों को संरक्षित रखने का काम किया जाएगा. बता दें कि वाराणसी को धर्म, आध्यात्म के साथ साहित्य और विद्या का भी शहर कहा जाता है. यहां के कई बड़े साहित्यकारों ने हिंदी को एक नया मुकाम दिया है. इसी क्रम में पहली बार यहां पर हिंदी साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए हिंदी भाषा का म्यूजियम बनाया जाएगा, जिसकी शासन से मंजूरी भी मिल गई है. 

म्यूजियम बनारस के पुलिस लाइन स्थित हिंदी भाषा के कार्यालय के समीप बनाया जाएगा जिसकी कुल कीमत 31 करोड़ रुपए होगी. जल्द ही इसे तैयार करने का काम शुरू हो जाएगा. इस बारे में राज्य हिंदी संस्थान की निदेशक चंदन बताती हैं कि, यह हिंदी संग्रहालय एक भाषा को समर्पित देश का पहला म्यूजियम होगा, जिसमें हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार उनकी पुस्तक तस्वीर दुर्लभ पांडुलिपियों दस्तावेजों को संरक्षित रखा जाएगा.

ये होंगी सुविधाएं  
म्यूजियम में एक एमपी थियेटर और ऑडिटोरियम भी होगा. जिसमें साहित्यकारों के जीवन से जुड़ी रचनाओं को समझाया जाएगा और अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. इस म्यूजियम में हिंदी साहित्य से जुड़े दिग्गजों को लेकर गैलरी होगी, जिसमें उनकी प्रतिमाएं और पेंटिंग लगाई जाएगी. और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण किताबें को रखा जाएगा. उन्होंने बताया कि, इसके बन जाने का सबसे बड़ा फायदा आम जनमानस के साथ हिंदी साहित्य प्रेमियों को मिलेगा, उन्हें पुराने साहित्यकारों की पुस्तक व जानकारी के लिए यहां वहां दौड़ना नहीं पड़ेगा.

10 करोड़ का बजट पास
संस्थान निदेशक चंदन बताती हैं कि हिंदी साहित्य भाषा म्यूजियम के लिए सरकार से पहले ही स्वीकृति मिल गई थी. डिजाइन को भी स्वीकृत कर लिया गया है. इसको लेकर के बीते 24 सितंबर को शासन के साथ बैठक भी हुई थी, जिसमें इंटीरियर डिजाइनिंग की प्रक्रिया चल रही है. इसकी रिपोर्ट सबमिट करने के साथ 10 करोड़ का बजट जारी हो जाएगा और काम की शुरुआत हो जाएगी. बनारस एक ऐसा शहर है जहां से भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद जैसे दिग्गज साहित्यकार हुए और उन्होंने बनारस की यह पहचान बनाई, इस म्यूजियम के बन जाने से उनकी पहचान और विरासत सुरक्षित होगी जो कहीं ना कहीं देख रेख के आभाव में गुमनाम होती नजर आ रही है.
- Legend News

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला: पति से बदला लेने के लिए हो रहा क्रूरता कानून का गलत इस्तेमाल


 अतुल सुभाष, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे, ने हाल ही में आत्महत्या कर ली। उनकी खुदकुशी के पीछे उनकी पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज उत्पीड़न के आरोपों को बताया जा रहा है। बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले 34 साल के इंजीनियर अतुल सुभाष पर कई मुकदमे चल रहे थे. इनमें भरण पोषण, दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और तलाक के मामले शामिल थे. आत्महत्या से पहले अतुल सुभाष ने एक घंटे से ज्यादा समय का वीडियो संदेश जारी किया था और 23 पेज का सुसाइड नोट भी लिखा. यही नहीं अतुल सुभाष ने न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं. उन्होंने पत्नी निकिता सिंघानिया, सास, साले और उनके मामले की सुनवाई कर रही जज पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं. अतुल सुभाष की आत्महत्या के साथ ही एक सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या हमारे देश में पुरुषों के लिए इस तरह के मामलों में कोई कानून नहीं है.

इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न (धारा 498ए) के बढ़ते दुरुपयोग को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में कानून का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट की ही वकील और तमाम पति-पत्नी के मामलों को देख चुके आजाद खोखर ने बताया कि लोअर ज्यूडिशरी एक तरफा काम करती है. कई बार वह सिर्फ महिलाओं के हक में ही बात करती है. चाहे उन्हें तमाम बार यह दिशा निर्देश क्यों ना मिले हों कि वो पति-पत्नी के मामलों में दोनों की सुने और सही सुनवाई करे. इसके बाद जिला स्तर तक सिर्फ एकतरफा फैसला होता है. लोअर ज्यूडिशरी पुरुषों की बातों को एक तरफ से नजरअंदाज कर देते हैं. यही वजह है कि अतुल सुभाष जैसे आत्महत्या के मामले होते रहते हैं. लोअर ज्यूडिशरी की सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट या किसी भी न्यायालय द्वारा मॉनिटरिंग होनी चाहिए, क्योंकि उस स्तर पर कहीं ना कहीं एक तरफा ही काम होता है और महिलाओं के हक में ही सारी सुनवाई होती है.

हालांक‍ि अदालत ने इस मामले को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि बिना ठोस सबूत के आरोप लगाना निर्दोष लोगों को मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करता है।

न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों में बिना ठोस सबूत के पति और उनके परिवार के खिलाफ आरोपों को प्राथमिक स्तर पर ही रोक देना चाहिए। वैवाहिक विवादों में परिवार के सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति पर अदालत ने चिंता व्यक्त की। पीठ ने स्पष्ट किया कि अस्पष्ट और सामान्य आरोपों को आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए को दहेज उत्पीड़न और क्रूरता रोकने के उद्देश्य से लागू किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को त्वरित न्याय प्रदान करना और ससुराल में होने वाले अत्याचार को खत्म करना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाल के वर्षों में इस प्रावधान का दुरुपयोग बढ़ रहा है।

अदालत ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवादों में आईपीसी की धारा 498ए का इस्तेमाल व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने और पति एवं उनके परिवार को परेशान करने के लिए किया जा रहा है। अदालत ने इस प्रवृत्ति को रोकने की जरूरत पर जोर दिया।

वैवाहिक विवादों में सावधानी की आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून का इस्तेमाल किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने के लिए न हो। साथ ही, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी महिला जो वास्तव में उत्पीड़न का शिकार है, उसे अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है।

1. धारा 498ए क्या है?

धारा 498ए भारतीय दंड संहिता का प्रावधान है, जो दहेज उत्पीड़न और वैवाहिक क्रूरता से महिलाओं की सुरक्षा के लिए लागू किया गया है।

2. दहेज उत्पीड़न मामलों में सबसे बड़ी समस्या क्या है?

इन मामलों में अक्सर बिना सबूत के पति और उनके परिजनों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं, जिससे निर्दोष लोग परेशान होते हैं।

3. अदालतें दहेज उत्पीड़न मामलों में क्या कदम उठा रही हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में ठोस सबूत और विशिष्ट आरोपों के बिना कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वैवाहिक विवादों में कानून का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष व्यक्तियों की सुरक्षा पर जोर दिया है।


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पति भी कर सकता है मेंटेनेंस की मांग

आजाद खोखर ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट में पति-पत्नी किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं है. दोनों के लिए सामान्य न्याय है, लेकिन कई बार पुरुष सही वकील या सही सिस्टम को नहीं समझ पाते हैं जिस वजह से वो परेशान हो जाते हैं. पुरुष और महिला दोनों के मेंटेनेंस की व्यवस्था हिंदू मैरिज एक्ट में है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस है कि अगर पत्नी कमा रही है तो भी वह मेंटेनेंस मांग सकती है. इसी तरह पति भी मेंटेनेंस मांग सकता है. मुंबई हाई कोर्ट ने 2015 में पत्नी द्वारा पति को 3,000 रुपये महीने अंतरिम भरण पोषण के तौर पर देने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25 के तहत पति पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण पोषण मांगने का अधिकार है.


क्या है घरेलू हिंसा का कानून?

अगर पति को लग रहा है कि पत्नी ने झूठा केस किया है या झूठे मामलों में फंसा रही है, उसके पूरे परिवार को घसीट लिया गया है तो पति सबूत के साथ थाने में जाकर पत्नी के खिलाफ और उसके परिवार के खिलाफ प्रताड़ना का केस कर सकता है. हालांकि पत्नी के पास घरेलू हिंसा का कानून है, पति के लिए वैसा कोई कानून आज तक बना ही नही है. घरेलू हिंसा से सुरक्षा का कानून सिर्फ पत्नी के लिए है, पति के लिए नहीं. हालांकि इसे मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में लिया जाएगा. जिसके आधार पर पति अपनी पत्नी से तलाक की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है, सेक्शन 498a के तहत.

- अलकनंदा स‍िंंह 

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

दर्दनाक कहानी: अपनी मां के मरने का व्यापार करता एक बेटा...


 आज twitter यान‍ि X पर एक आंखेंदेखा वाकया पढ़ा ज‍िसे भुक्तभोगी लंकेश ( X पर एकाउंट का नाम)  ने साझा क‍िया...आप भी पढ़ें क‍ि गांव गमाण में आज र‍िश्ते क‍िस तरह बदल चुके हैं...  


छठ प्रसाद पहुंचाने दीदी के ससुराल गए।आवभगत, दण्ड - प्रणाम के बाद, दीदी के ससुर बोले की,चलिए बगल में एक वृद्धा मरणासन्न की अवस्था "भुइयाँ सेज" में पड़ी हैं, हालत देख-सुन के आते हैं। तकरीबन तीन-चार लोग हम चल पड़े। वहाँ पहुंच मैंने देखा, एक चमचमाता चेहरा,धवल बाल,बड़ी बिंदी,भखरा सिंदूर से भरा माँग,नथनी, बाली, मंगलसूत्र पहने, हल्का चादर ओढ़े एक वृद्धा चारपाई पर आँख बंद किये लेटी हुई हैं। सांस की गति तेज और गर्दन की घरघराहट साफ सुनाई दे रहा था ।कोई अनजान इनको देख, समझेगा कि कोई दादी जी आराम से सो रही है। अम्मा की सबसे छोटी बेटी जो कल हीं अपने ससुराल से खबर मिलते हीं भाग के आई थी, तलवे को गोद में ले "घरा" कर रहीं थी। अम्मा की दो बड़ी बेटियां भी आ गयीं थी, जो बाहर खड़ी आपस में दुखम सुखम साँझा कर रहीं थीं। थोड़ा पीछे चलते हैं।

अम्मा के तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। बात 2009 की है, जब अम्मा के बड़े बेटे (आशीष) जो कि मर्चेंट नेवी में अच्छे पद पर कार्यरत थे, नशे में जहाज से समंदर में गिरकर नुकसान हो गए थे। आशीष नॉमिनी अपनी पत्नी (प्रिया) को बनाये थे तो नेवी से मिलने वाला सारा पैसा प्रिया को मिला। प्रिया बच्चों को लेकर मायके आ गयी और शहर में किराये का फ्लैट लेकर रहने लगी। मिले रकम से एक फूटी कौड़ी भी,प्रिया ने आशीष के माँ बाप को नहीं दी। घर से लगभग नाता तोड़ हीं लिया। समय बीतता गया,आशीष के पिताजी (राम शरण जी) बहू के इस रवैये से दुःखी और विचलित तो हुए मगर, मन को दिलासा दिलाये कि चलो, दोनों नाती शहर में दो अक्षर अच्छा हीं सीख लेंगे। आदमी कितना भी दुःखी क्यों न हो, मन के किसी कोने में कोई एक किरण आशा की जलाकर अपने दुःख को कम जरूर कर लेता है। और आशा दिल के भार को ऐसे कम करता है जैसे भींगी रुई के भार को धूप। समय के साथ, आशीष की तीनों बहनों और एक भाई की शादी हो गयीं। बहनें अपने अपने घर चली गयीं। आशीष के दोनों भाई, मुकेश और दिनेश घर पर हीं रहते हैं। राम शरण जी, अपने दोनों बेटों के साथ मिलकर बगल में हीं एक नया मकान बनवा लिए हैं, जिसका गृहप्रवेश इसी महीने के 26 तारीख को तय है। छोटे बेटे की शादी भी तय है जो कि, जनवरी 2025 के अंतिम हफ्ते में होना है।दोनों की तैयारी बड़े जोर शोर से चल रहा था। नाच वाले, बाजा वाले, टेंट, मिठाई, साज सज्जा वाले सभी को कुछ पैसा देकर तय कर लिया गया था कि, अचानक हीं अम्मा को पैरालाईसिस ने घेर लिया। राम शरण सिरहाने बैठे एकटक चेहरे को ऐसे निहारे जा रहे थे जैसे आँखे खोल अम्मा उनसे पानी के अब पूछेंगी की तब पूछेंगी। पति पत्नी जीवन में कितना भी नोंक झोंक करे, रुठे मनाये, डांटे फटकारे मगर, चौथेपन के पड़ाव में एक दुसरे से ऐसे अचानक हीं हमेशा हमेशा के लिए दूर जाने के लिए आँखे बंद कर ले तो दोनों के लिए ये दर्द असह्य हो जाता है। अम्मा के शरीर में कोई हरक़त नहीं हो पा रहा था, केवल सांस चल रहा था। डॉक्टर बोल दिए थे, कोमा में हैं, देखिये कितना दिन जिंदा रह पाती हैं। बेटियां बैठ के अम्मा के चादर,बाल,साड़ी को ठीक करने लगी,कोई मुंह पोंछने लगी,कोई हाथ सहलाने लगी। अब जबकि दो दिन बीत गए मुझे अपने घर आये।फोन करके पता किया तो,पता चला कि,अम्मा अभी भी उसी हालात में हैं।मैंने बोला, चलो अच्छा हीं है। पर इसके बाद दिनेश (अम्मा का छोटा बेटा) ने जो मुझसे कहा, उसे सुनकर मैं सहम हीं नहीं गया, बल्कि, मानव होने पर भी मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। "दिनेश - वो तो ठीक है कि जितना दिन जी जाए अम्मा। पर.. मैं - पर क्या?? वहीं, गृह प्रवेश का भी दिन रखा गया है, मेरी शादी का भी दिन रखा गया है. तो?? अरे आप समझ नहीं रहें हैं, अगर अम्मा आज की रात नहीं मरती हैं तो आगे सब कुछ बर्बाद हो जायेगा। आज 12 है, चौदह दिन बाद गृहप्रवेश है, वो होगा नहीं,, अगले गृह प्रवेश की तिथि वसंत पंचमी को है. मेरी शादी की तारीख वसंत पंचमी से पहले तय है। पुराने घर में शादी होगी नहीं. बेटी वाले मान नहीं रहे। आप हीं बताइये, कइसे होगा सब? अब आज गुजर जाती तो भी सब समय से हो हवा जाता। (मैं चुप!) दिनेश बोलता रहा - और वैसे भी अम्मा आगे और जी के का हीं कर लेंगी। ठीक तो होंगी नहीं,, जितना भोग भोगान लिखा है, भोग रहीं हैं। अब हमलोगों को भी जितना पेराना है, पेराएंगे। पैसा रुपिया सब साटा बाजा का बयाना दिए बर्बाद हो रहा है। अब मेरे कान, मस्तिष्क ठन्डे पड़ गए थे, दिनेश बोलता रहा, मगर मैं आगे और सुन पाने की स्थिति में नहीं था। धक्क से रह गया मेरा मन। कौन हैं हम मानव? किस हद तक गिर रहें हैं हमलोग? जिस बेटे के पेट में आने मात्र की सूचना माँ को ममता में विह्वल कर देता है, उसके द्वारा पेट में लात मारना माँ को आनन्द भर देने वाला होता है उस माँ के लिए ऐसा सोच! हे प्रभु

प्रस्तुत‍ि : अलकनंदा स‍िंंह