आज एक धार्मिक चर्चा के दौरान ये सार निकला... आप भी लाभान्वित हों इस संवाद से ।
जब पार्वती ने पूछा — मैं कौन हूँ? यह सुनकर इसके उत्तर में शिव ने … माया को नग्न कर दिया
इस दृश्य का कुछ इस तरह प्रारंभ हुआ :
रात्रि थी। मौन थी।
चंद्रमा धुंधला था — जैसे कोई प्रश्न हवा में अटका हो।
पार्वती ने पूछा:
"नाथ… मैं कौन हूँ?"
आप मुझे शक्ति कहते हैं, ब्रह्म कहते हैं…...
पर कभी-कभी मैं स्वयं को केवल एक देह, एक पात्र, एक भूमिका जैसा महसूस करती हूँ।
क्या यह मेरा सत्य है या कोई भ्रम?
शिव ने कोई उत्तर नहीं दिया।
कुछ क्षण तक चुप रहे…
फिर बोले:
जिस दिन तुम अपने ‘मैं’ पर प्रश्न करोगी —
उसी दिन तुम उससे मुक्त होने लगोगी।
शिव ने हाथ बढ़ाया:
चलो — आज मैं तुम्हें वह दिखाता हूँ,
जिसे देखकर माया स्वयं अपनी आंखें फेर लेती है।
दृश्य 1: शव साधना
एक श्मशान — राख उड़ रही थी।
चिता बुझ चुकी थी।
एक स्त्री का शव पड़ा था — चेहरा वैसा ही… जैसा पार्वती का।
पार्वती भीतर तक कांप गईं।
क्या यह… वही थी?
शिव बोले:
यह तुम्हारा पहला भ्रम है — देह।
इसे तुम संवारती हो, रचती हो…
और फिर इसे ही ‘स्व’ मान बैठती हो।
"माया की पहली चाल — देह को आत्मा बना देना है।"
दृश्य 2: श्मशान की साक्षी
वहीं एक बूढ़ी माँ रो रही थी — बेटे की चिता जल रही थी।
दूसरी ओर कुछ लोग हँसते हुए गप्पें मार रहे थे।
एक ने कहा:
आज तीसरी चिता है… अब बारी उसकी होगी।
पार्वती की आँखें भर आईं।
शिव ने पूछा:
कौन सच्चा है — वो जो विलाप कर रहा है या वो जो हँस रहा है?
या फिर माया वही है — जो हर रिश्ते को समय का किरायेदार बना देती है?
दृश्य 3: भ्रम का बिंब
अब शिव उन्हें एक काले जल वाले सरोवर के पास ले गए।
पार्वती ने पानी में देखा —
वहाँ उनका प्रतिबिंब था…
लेकिन हर पल बदलता हुआ।
कभी वह वृद्धा, कभी वेश्या, कभी ऋषि, कभी राक्षसी।
"ये क्या है?" — पार्वती की आवाज़ कांप रही थी।
शिव ने उत्तर दिया:
यही तुम हो — जब तुम अपने स्वरूप को भूल जाती हो।
जब तुम अपनी शक्ति को पहचानने के बजाय समाज से पहचान माँगती हो।
माया का दूसरा स्वरूप — 'मैं कौन हूँ' का उत्तर बाहर ढूँढना।
दृश्य 4: शव-स्मृति और आत्म-परछाई
एक तपस्विनी बैठी थी —
निःशब्द, निर्वस्त्र, निर्विकार।
उसकी आँखें बंद थीं, और ललाट पर अग्नि रेखा थी।
पार्वती चौंकीं — यह उन्हीं का प्रतिबिंब था… पर मुक्त।
शिव बोले:
यह तुम हो — जब तुम स्वयं को छोड़ देती हो।
जब तुम 'शक्ति' नहीं, 'शून्य' बन जाती हो —
तब तुम शिव बन जाती हो।
पार्वती ने काँपती आवाज़ में कहा:
मैं शक्ति थी, माया बन गई…
और अब जान गई हूँ —
जो मिटता है, वह मैं नहीं।
जो रोता है, वो माया है।
और जो मौन हो गया है — वही 'मैं' हूँ।
शिव ने उत्तर दिया:
जब तुमने प्रश्न किया —
तभी तुम माया बनी।
और जब तुम मौन हो गई —
तभी तुम ब्रह्म हो गईं।
शास्त्र-प्रमाण ये है कि-
“शिवः शक्त्या युक्तः…”
— शिवमहापुराण
(शक्ति शिव से भिन्न नहीं — लेकिन भ्रम से उत्पन्न होती है)
“मायैव सर्वमखिलं ह्यनात्मा…”
— शिवगीता
(जो ‘मैं’ नहीं है, वही सबसे बड़ी माया है)
“ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या…”
— अद्वैत वेदांत
जब पार्वती ने खुद से पूछा — मैं कौन हूँ…
तो माया चुप हो गई।
“माया वही है —
जो तुम हो ही नहीं…...
फिर भी हर दिन ‘वही’ बनने की कोशिश करते हो।”
साभार - 𝗠𝗮𝗻𝗶𝘀𝗵 𝗗𝗮𝘁𝘁 𝗧𝗶𝘄𝗮𝗿𝗶