मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

हमारा इत‍िहास: उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के बुधनी में भी है सूर्य मंदिर, जानना जरूरी है

 










उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के बुधनी स्थित सूर्य मंदिर मूलतः एक भव्य स्थापत्य संरचना थी, जिसमें एक विशाल मंडप और एक बरामदे सहित दो मंजिला गर्भगृह था, जो सभी जटिल नक्काशी और आधार-उभरी हुई आकृतियों से सुसज्जित थे। आज, मंदिर के केवल कंकाल अवशेष ही बचे हैं।


प्रवेश द्वार सूक्ष्म मूर्तिकला से अलंकृत है, जबकि चौखट और चित्रवल्लरी विष्णु के दस अवतारों को प्रमुखता से दर्शाती हैं, जिनमें लक्ष्मी मध्य फलक पर विराजमान हैं। केंद्रीय देवता सूर्य स्थानक मुद्रा (खड़ी मुद्रा) में हैं।


मंदिर त्रिरथ योजना का अनुसरण करता है और ग्रेनाइट से निर्मित है। अनुमान है कि इसका निर्माण 10वीं-11वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है।


पूर्वमुखी शिव मंदिर, दन्नैक के प्रांगण के पश्चिम में स्थित है। यह वर्तमान भूतल से नीचे स्थित है, इसलिए इसे 'भूमिगत मंदिर' का लोकप्रिय नाम प्राप्त हुआ है। शिलालेखों में इसे प्रसन्न विरुपाक्ष कहा गया है, और शैलीगत विश्लेषण से पता चलता है कि मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी ईस्वी में हुआ था। 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान, मंदिर का विस्तार किया गया और कई मंडप जोड़े गए।


मंदिर के स्वरूप में एक संधार गर्भगृह, एक अंतराल और एक सभामंडप है, जिसके उत्तर और दक्षिण में दो उप-मंदिर हैं, साथ ही एक बंद मंडप है जिसके आगे एक अखंड दीपस्तंभ है। मंदिर के शीर्ष पर कदंब-नागर शैली का शिखर है, जो उप-मंदिरों को सुशोभित करने वाले शिखरों के समान है।


महामंडप के उत्तर में एक स्तंभयुक्त हॉल और स्तंभ स्तंभ है, जबकि दक्षिण की ओर एक अन्य मंदिर और स्तंभ स्तंभ है जिसके साथ एक प्रवेश द्वार है। महामंडप के पूर्वी भाग में वेदियाँ और एक अन्य प्रवेश द्वार है।


मुख्य मंदिर के उत्तर-पश्चिम में एक अलग संरचना है जिसमें एक गर्भगृह और एक अंतराल है, और दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक छोटा उप-मंदिर है। इस संरचना में पूर्वमुखी एक महाद्वार शामिल है।


दक्षिण में प्रांगण के बाहर एक अलंकृत कल्याणमंडप है, जो 1513 ई. में कृष्णदेवराय द्वारा प्रसन्न विरुपाक्ष को दिए गए शाही अनुदान को दर्ज करने वाले एक उत्कीर्ण शिलापट्ट के लिए उल्लेखनीय है।

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

राम मंदिर के ध्वज पर बना पेड़ बैंगनी फूलों वाला कोविदार, जान‍िए इसकी कहानी





 राम मंदिर के शिखर पर फहराए जाने वाले ध्वज का आकार-प्रकार और रंग रूप तय हो गया है। विवाह पंचमी के दिन 25 नवंबर को आयोजित ध्वजारोहण समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी 191 फीट ऊंचे राम मंदिर के शिखर पर यह ध्वज फहराएंगे। 
त्रिकोण आकृति में भगवा रंग के 11 फीट चौड़े और 22 फीट लंबे ध्वज को फहराएंगे, जिस पर सूर्यवंशी और त्रेता युग का चिह्न स्थापित किया जाएगा। इसमें वो काव‍िदार वृक्ष भी होगा ज‍िसे लेकर आज बहुत चर्चा हुई ...आप भी जान‍िए इसके बारे में... 

इस ध्वज की डिजाइन को रीवा जिले के हरदुआ गांव के निवासी ललित मिश्रा तैयार करवा किया है.

ललित मिश्रा वर्षों से राम मंदिर का ध्वज तैयार करने में जुटे हुए थे. इसके लिए बाकायदा उनके द्वारा रिसर्च की जा रही थी. इससे पहले भी सप्ताह भर पहले उन्होंने श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को ध्वज की तैयार डिजाइन भेजी थी. जिस ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय और 5 सदस्यीय कमेटी के द्वारा ध्वज पर विचार किया गया था. साथ ही ध्वज में बदलाव के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए थे. उन्ही सुझाव के आधार पर अब नई डिजाइन तैयार की गई है. 

ये है कोविदार का वृक्ष, यह भी अयोध्या के राजध्वज में होगा। अयोध्या शोध संस्थान ने ऐसा 2023-24 में ही निर्धारित कर लिया था। यह पूर्ण शोध पर आधारित है। 

भरत जी जब पादुका लेकर नंदीग्राम गए, तो वहां यही ध्वज लगाया था। वाल्मीकि रामायण में भी इसका वर्णन है।


According to - Plant and Animal Diversity in Valmiki Ramayana -- इसका बॉटैन‍िकल नेम Bauhinia purpurea है  native of myanmar है (कोव‍िदार) .. ये कचनार की फैम‍िली का है ....मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया. 


अगर पौराणिक मान्यताओं को साइंस से जोड़ें तो कोविदार शायद दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट होगा. ऋषि कश्यप ने पारिजात के साथ मंदार को मिलाकर इसे तैयार किया था. दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास माने जाते हैं. इनके मेल से बना पेड़ भी जाहिर तौर पर उतना ही अलग था. 


पारिजात और मंदार को मिलाकर हाइब्र‍िड तरीके से तैयार किया था क्योंक‍ि दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास हैं. कसैले गुण के कारण मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया 


ध्वज पर सूर्य के साथ कोविदार वृक्ष बना हुआ होगा. कोविदार अयोध्या का राजवृक्ष था, जिसका जिक्र वाल्मीकि पुराण में भी है. माना जाता है कि ये दुनिया का पहला हाइब्रिड पेड़ है, जिसे ऋषि कश्यप ने बनाया था. 


रामायण कांड में नाम आता है 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, महर्षि कश्यप ने कोविदार वृक्ष को बनाया था. वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका बार-बार उल्लेख मिलता है. जैसे राम के वन जाने के बाद भरत उन्हें मनाकर लौटाने के लिए निकलते हैं. वे लाव-लश्कर के साथ जंगल पहुंचे, जहां श्रीराम भारद्वाज मुनि के आश्रम में थे. शोर सुनकर लक्ष्मण को किसी सेना के हमले की आशंका हुई, लेकिन जब उन्होंने ऊंचाई पर जाकर देखा तो रथ पर लगे झंडे पर कोविदार पहचान गए. तब वे समझ गए कि अयोध्या से लोग आए हैं.  


शोध पत्रिकाओं में भी नाम


वैज्ञानिकों के लिए बनी यूरोपियन सोशल नेटवर्किंग साइट 'रिसर्च गेट' में भी इसपर शोध छप चुका है.  'प्लांट एंड एनिमल डायवर्सिटी इन वाल्मीकि रामायण' नाम से प्रकाशित रिसर्च में राम के वन प्रवास के दौरान भी कई पेड़ों का जिक्र मिलता है. इसी में कोविदार का भी उल्लेख है. कोविदार कचनार की प्रजाति का वृक्ष होता है, जो श्रीराम के समय अयोध्या और आसपास के राज्यों में खूब मिलता था. इसकी सुंदरता और मेडिसिनल इस्तेमाल की वजह से इसे राजवृक्ष भी मान लिया गया. 


ऋषि ने कैसे तैयार किया वृक्ष 

अगर पौराणिक मान्यताओं को साइंस से जोड़ें तो कोविदार शायद दुनिया का पहला हाइब्रिड प्लांट होगा. ऋषि कश्यप ने पारिजात के साथ मंदार को मिलाकर इसे तैयार किया था. दोनों ही पेड़ आयुर्वेद में बेहद खास माने जाते हैं. इनके मेल से बना पेड़ भी जाहिर तौर पर उतना ही अलग था. 


रंग-रूप कैसा है 


कोविदार का वैज्ञानिक नाम बॉहिनिया वैरिएगेटा है. ये कचनार की श्रेणी का है. संस्कृत में इसे कांचनार और कोविदर कहा जाता रहा. कोविदार की ऊंचाई 15 से 25 मीटर तक हो सकती है. ये घना और फूलदार होता है. इसके फूल बैंगनी रंग के होते हैं, जो कचनार के फूलों से हल्के गहरे हैं. इसकी पत्तियां काफी अलग दिखती हैं, ये बीच से कटी हुई लगती हैं. इसके फूल, पत्तियों और शाखा से भी हल्की सुगंध आती रहती है, हालांकि ये गुलाब जितनी भड़कीली नहीं होती.  


कहां मिलता है ये पेड़ कोविदार की प्रजाति के पेड़ जैसे कचनार अब भी हिमालय के दक्षिणी हिस्से, पूर्वी और दक्षिणी भारत में मिलते हैं. इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल की मानें तो कोविदार अब भी असम के दूर-दराज इलाकों में मिलता है. जनवरी से मार्च के बीच इसमें फूल आते हैं, जबकि मार्च से मई के बीच फल लगते हैं. 


इन बीमारियों में राहत 

आयुर्वेद में इसके सत्व का उपयोग स्किन की बीमारियों और अल्सर में होता है. इसकी छाल का रस पेट की क्रॉनिक बीमारियां भी ठीक करने वाला माना जाता है. जड़ के बारे में कहा जाता है कि सांप के काटे का भी इससे इलाज हो सकता है. ये बातें फार्मा साइंस मॉनिटर के पहले इश्यू में बताई गई हैं. 

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

करवाचौथ अर्थात् करक चतुर्थी...जहां छलनी से देखे जाने का नाटक नहीं है

 सन् 1713 में रत्नाकर भट्ट द्वारा रचित ‘जयसिंहकल्पद्रुम’ में #करवाचौथ व्रत का अधिकार केवल स्त्रियों को है। इसमें भगवान् शिव-पार्वती और भगवान् कार्तिकेय की पूजा होती है। चंद्रोदय पर अर्घ्य अर्पित किया जाता है। आजकल छलनी से पति को देखने का नाट्य चल पड़ा है, जो शास्त्रसम्मत नहीं है।



गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

दिगम्बर आपको अपने चरणों में जगह दे पंड‍िज्जी ...नमन पद्मभूषण छन्नूलाल जी

काशी का घाट, शोक में भी उल्लास का गीत और अध्यात्म... शिवत्व में विलीन हो गए पंडित छन्नूलाल मिश्र

 

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज पंडित छन्नूलाल मिश्र का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. आजमगढ़ में जन्मे पंडित छन्नूलाल ने ठुमरी और पुरब अंग को अपनी भावपूर्ण गायकी से अमर बनाया. वह किराना-बनारस घराने के प्रतिनिधि थे. उन्हें 2020 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था. 

वो जानते थे कोयल और मोर किस स्वर में बात करते हैं। उन्हें बात करना आता था चकवा, चकई और चकोर से। 


 वो जब गाते थे, तब जेठ की झुलसाती धूप में फागुन का चटक रंग समा जाता। चैत खिल जाता हमारे रोम-रोम में और पता चलता कि पेड़ पर बोल रही कोयल भी किसी विरहन की दुश्मन हो सकती है। 


 बाबा विश्वनाथ और तुलसीदास को जीवन का केंद्रीय स्वर बनाकर प्रेम का आलाप लेने वाले पंडित जी को वो साधारण श्रोता भी सुन सकता था, जो नहीं जानता दादरा, कहरवा, बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल का अंतर। 

लेकिन मेरा ख्याल ये है कि आज बनारस के तानपुरे का वो तार टूट गया, जिसके गूंजने से पूरी दुनिया के मंचो पर बनारस शान से गूंजता था। 

अश्रुपूरित श्रद्धांजलि पंडित जी। आपके बिना तो अब चैत भी रोएगा, फागुन में काशी का मसान भी। रोएगी आज कोयल, सेजिया पर लेटकर विरहन।

आज आखिरी बार काशी आएंगे काशी के अपने सबसे दुलारे सप्तक, पद्मभूषण छन्नूलाल जी। कुछ देर बड़ी गैबी वाले घर की दीवारों को अलविदा कहने। जहां आने और रहने पिछले कई सालों से छटपटाते रहे। और फिर मसाने की होरी गाकर जिस मणिकर्णिका के हवाले शवों की राख से होली को काशी के उत्सव की धुन बनाया, वहां हमेशा के लिए बाबा की हथेली पर सो जाने। क्या कहते हैं उसे, चिरनिद्रा…।

काशी और उसे घाट में तुरपे मसाने की होरी, ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी के राग आज हमेशा के लिए याददाश्त का सबसे जहीन टुकड़ा बन गया है।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

जीवन के शतपथ: मणिकर्णिका घाट पर शांत हो चुकी च‍िताभस्म पर मुखाग्नि देने वाला 94 क्यों लिखता है


 #शुक्ल_यजुर्वेद का एक विशाल और प्रामाणिक ब्राह्मण ग्रंथ #शतपथ_ब्राह्मण जीवन के सौ मार्ग या जीवन के शतपथ का वर्णन क‍िया गया है, जिसमें यज्ञों के विधि-विधान के साथ-साथ सांस्कृतिक तत्वों, सामाजिक जीवन का वर्णन और ब्रह्म विद्या का विस्तार से उल्लेख है। इसके अंतिम भाग #बृहदारण्यक_उपनिषद में, जो स्वयं जीवन की उच्च शिक्षाओं का मार्ग प्रशस्त करता है। 


काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है। यह सभी को नहीं मालूम है। खांटी बनारसी लोग या अगल बगल के लोग ही इस परम्परा को जानते हैं। बाहर से आये शवदाहक जन इस बात को नहीं जानते।


जीवन के शतपथ होते हैं। 100 शुभ कर्मों को करने वाला व्यक्ति मरने के बाद उसी के आधार पर अगला जीवन शुभ या अशुभ प्राप्त करता है। 94 कर्म मनुष्य के अधीन हैं। वह इन्हें करने में समर्थ है पर 6 कर्म का परिणाम ब्रह्मा जी के अधीन होता है।हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश- अपयश ये 6 कर्म विधि के नियंत्रण में होते हैं। अतः आज चिता के साथ ही तुम्हारे 94 कर्म भस्म हो गये। आगे के 6 कर्म अब तुम्हारे लिए नया जीवन सृजित करेंगे।


अतः 100 - 6 = 94 लिखा जाता है।


गीता में भी प्रतिपादित है कि मृत्यु के बाद मन अपने साथ 5 ज्ञानेन्द्रियों को लेकर जाता है। यह संख्या 6 होती है।मन और पांच ज्ञान इन्द्रियाँ।

अगला जन्म किस देश में कहाँ और किन लोगों के बीच होगा यह प्रकृति के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं होता है। अतः 94 कर्म भस्म हुए 6 साथ जा रहे हैं।

विदा यात्री। तुम्हारे 6 कर्म तुम्हारे साथ हैं।

आपके लिए इन 100 शुभ कर्मों का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है जो जीवन को धर्म और सत्कर्म की ओर ले जाते हैं एवं यह सूची आपके जीवन को सत्कर्म करने की प्रेरणा देगी।       


100 शुभ कर्मों की गणना

धर्म और नैतिकता के कर्म

1.सत्य बोलना

2.अहिंसा का पालन

3.चोरी न करना

4.लोभ से बचना

5.क्रोध पर नियंत्रण

6.क्षमा करना

7.दया भाव रखना

8.दूसरों की सहायता करना

9.दान देना (अन्न, वस्त्र, धन)

10.गुरु की सेवा

11.माता-पिता का सम्मान

12.अतिथि सत्कार

13.धर्मग्रंथों का अध्ययन

14.वेदों और शास्त्रों का पाठ

15.तीर्थ यात्रा करना

16.यज्ञ और हवन करना

17.मंदिर में पूजा-अर्चना

18.पवित्र नदियों में स्नान

19.संयम और ब्रह्मचर्य का पालन 

20.नियमित ध्यान और योग

सामाजिक

और पारिवारिक कर्म                                      

21.परिवार का पालन-पोषण

22.बच्चों को अच्छी शिक्षा देना

23.गरीबों को भोजन देना

24.रोगियों की सेवा

25.अनाथों की सहायता

26.वृद्धों का सम्मान

27.समाज में शांति स्थापना

28.झूठे वाद-विवाद से बचना

29.दूसरों की निंदा न करना

30.सत्य और न्याय का समर्थन

31.परोपकार करना

32.सामाजिक कार्यों में भाग लेना

33.पर्यावरण की रक्षा

34.वृक्षारोपण करना

35.जल संरक्षण

36.पशु-पक्षियों की रक्षा

37.सामाजिक एकता को बढ़ावा देना

38.दूसरों को प्रेरित करना

39.समाज में कमजोर वर्गों का उत्थान

40.धर्म के प्रचार में सहयोग

आध्यात्मिक.और.व्यक्तिगत.कर्म                                           

41.नियमित जप करना

42.भगवान का स्मरण

43.प्राणायाम करना

44.आत्मचिंतन

45.मन की शुद्धि

46.इंद्रियों पर नियंत्रण

47.लालच से मुक्ति

48.मोह-माया से दूरी

49.सादा जीवन जीना

50.स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन)

51.संतों का सान्निध्य

52.सत्संग में भाग लेना

53.भक्ति में लीन होना

54.कर्मफल भगवान को समर्पित करना

55.तृष्णा का त्याग

56.ईर्ष्या से बचना

57.शांति का प्रसार

58.आत्मविश्वास बनाए रखना

59.दूसरों के प्रति उदारता

60.सकारात्मक सोच रखना

सेवा.और.दान.के.कर्म

61.भूखों को भोजन देना

62.नग्न को वस्त्र देना

63.बेघर को आश्रय देना

64.शिक्षा के लिए दान

65.चिकित्सा के लिए सहायता

66.धार्मिक स्थानों का निर्माण

67.गौ सेवा

68.पशुओं को चारा देना

69.जलाशयों की सफाई

70.रास्तों का निर्माण

71.यात्री निवास बनवाना

72.स्कूलों को सहायता

73.पुस्तकालय स्थापना

74.धार्मिक उत्सवों में सहयोग

75.गरीबों के लिए निःशुल्क भोजन

76.वस्त्र दान

77.औषधि दान

78.विद्या दान

79.कन्या दान

80.भूमि दान

नैतिक.और.मानवीय.कर्म                                          

81.विश्वासघात न करना

82.वचन का पालन

83.कर्तव्यनिष्ठा

84.समय की प्रतिबद्धता 

85.धैर्य रखना

86.दूसरों की भावनाओं का सम्मान

87.सत्य के लिए संघर्ष

88.अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना

89.दुखियों के आँसू पोंछना

90.बच्चों को नैतिक शिक्षा

91.प्रकृति के प्रति कृतज्ञता

92.दूसरों को प्रोत्साहन

93.मन, वचन, कर्म से शुद्धता

94.जीवन में संतुलन बनाए रखना

 विधि के अधीन.

6 कर्म                                         

95.हानि

96.लाभ

97.जीवन

98.मरण

99.यश

100.अपय

- Alaknanda Singh 

बुधवार, 20 अगस्त 2025

सुनिता विलियम्स का चौंकाने वाला खुलासा


 अंतरिक्ष यात्री सुनिता विलियम्स का नौ महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद पत्रकारों से दिया गया बयान अब पूरे विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है।

उन्होंने कहा—

"मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर की इच्छा से मैं अंतरिक्ष में फँसी रही। जब मैं अंतरिक्ष में 20 दिन की हुई, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं मृत्यु का सामना कर रही हूँ। जब मैंने सोचा कि अब भोजन और पानी की कमी के बीच मैं कैसे जीवित रहूँगी, तभी मुझे सनातन धर्म के चैत्र नवरात्रि के उपवास की याद आई। उस दिन से मैंने शाम को थोड़ा भोजन और पानी तथा सुबह थोड़ा पानी लेना शुरू किया। एक महीने बाद मैं स्वस्थ और प्रसन्न महसूस करने लगी। मुझे समझ आया कि मैं कुछ और समय तक टिक सकती हूँ।

"जब मैं मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही थी, तो मैंने कंप्यूटर खोला और सोचा कि एक दिन बाइबिल पढ़ूँगी। पहले भी कई बार पढ़ चुकी थी, पर एक पन्ना पढ़ते ही ऊब गई। फिर मन हुआ कि रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता दोबारा पढ़ूँ। (लगता है अब यह मुझे कोई शक्ति प्रदान कर रहा था।) मैंने (अंग्रेज़ी अनुवाद) डाउनलोड करके पढ़ना शुरू किया। 10-15 पन्ने पढ़ने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गई। उसमें गर्भ विज्ञान, समुद्र और आकाश का अद्भुत वर्णन था। मुझे लगा यह संसार को बताना चाहिए।

"अंतरिक्ष से देखने पर सूर्य ऐसा लगता है मानो कीचड़ के तालाब में बैठा हो। कभी-कभी ऊपर से कुछ आवाज़ें सुनाई देती थीं, जैसे मंत्रोच्चारण हो रहा हो। मुझे लगा कि यह संस्कृत-हिंदी के मंत्र हैं। मेरे साथी बैरी विलमोर ने कहा कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि मैं प्रतिदिन रामायण और गीता पढ़ती हूँ। इसके बाद मैंने गहराई से रामायण और गीता पढ़ने का निश्चय किया। यह अद्भुत अनुभव था। मैंने तुरंत एलन मस्क को फोन कर यह बात बताई।

"अब आप चौंक जाएँगे। कुछ दिन तो ऐसे रहे जब हम बड़े-बड़े उल्कापिंडों को अपनी अंतरिक्ष स्टेशन की ओर आते देख डर गए। जब कोई उपाय नहीं था, तो हमने ईश्वर से प्रार्थना की और चमत्कारिक ढंग से कुछ छोटे-छोटे गोलाकार प्रकाशपुंज (जो तारे जैसे दिखते थे) नीचे उतरकर उन सबको नष्ट कर गए। हमें ऐसा लगा जैसे तारे ही उन्हें मार रहे हों। यह हमें बहुत अचंभित कर गया। नासा ने वादा किया है कि इस विषय पर और गहन शोध किया जाएगा।

"आठ महीने में मैंने संपूर्ण रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ ली। मेरे भीतर लौटने का आत्मविश्वास जग गया। मुझे लगा कि अब मैं पृथ्वी पर वापस आ सकती हूँ।

"अप्रैल माह में जब सूर्य अस्त हो रहा था, तब पृथ्वी के ऊपर से शेर जैसी आकृति दिखाई दी, जिसके साथ माता जी और त्रिशूल भी था। जैसे ही वह पृथ्वी के वातावरण में पहुँची, वह अदृश्य हो गई। मैं समझ नहीं पाई कि यह कहाँ से आई थी। मेरे साथी बैरी विलमोर और मैंने देखा कि यह किसी विशेष परत से आ रही थी। तब मैंने समझा कि आकाश की भी कई परतें हैं। हमने बहुत सोचा कि ये उड़ते हुए घोड़े क्यों नहीं दिखे। फिर मैंने न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट देखी, जिसमें हडसन नदी के ऊपर चाँद के दिखने और 2 मार्च से सनातनी उपवास शुरू होने की खबर थी। तभी से नंगल में इस घटना का अवलोकन हो रहा था। बाद में हमने समझा कि यह धरती पर व्रत खोलने का समय था। मुझे लगता है कि वे ईश्वर के आशीर्वाद लेकर आने वाले देवदूत थे।

"अब मुझे लगता है कि सनातन धर्म की श्रीमद्भगवद्गीता सत्य है। अब मेरा शोध वेदों के विज्ञान पर होगा—गर्भ विज्ञान, समुद्र और अंतरिक्ष विज्ञान पर। मैं खगोल विज्ञान की हर बात जानना चाहती हूँ। नासा में वेदों की अद्भुत शक्तियों पर शोध करने के लिए एक नया विभाग शुरू करने का प्रस्ताव भी दिया गया है।"



सोमवार, 11 अगस्त 2025

सिविक सेंस जब तक नहीं आयेगा, तब तक इसी तरह दुत्कार जाते रहेंगे


 भारत के लोग हर जगह शोर मचाते हैं कि उनके लोग सभी बड़ी से बड़ी तकनीकी कंपनियों में छाये हुए हैं, वह सिलिकॉन वैली के रीढ़ हैं, वह अमेरिका से लेकर यूरोप तक सबसे अधिक कमाई वाले लोग हैं, उनके बच्चे सबसे अच्छी डिग्री लेने वाले लोग हैं, बावजूद उसके उनको जो सम्मान मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता। 


भारत के लोगों को दुनिया में तब तक सम्मान नहीं मिलेगा जब तक उनको कुछ आधारभूत सउर नहीं होगा, बेशऊर आदमी को दुनिया में सम्मान मिलना भी नहीं चाहिए। भारत के लोगों के अंदर साफ़ सफ़ाई, व्यवस्थित रहने का ढंग, सिविक सेंस जब तक नहीं आयेगा, वह इसी तरह दुत्कार जाते रहेंगे। 

हर शहर के एक दो क्षेत्रों को छोड़ दिया जाय, गंदगी गोबर कूड़ा कीचड़ प्लास्टिक फैला हुआ मिलता है। हर चौराहा चाहे वह नया ही क्यो न बने, बिलकुल उस से सटकर दुकानें खोल दी जाती हैं, फिर वही गाड़ियाँ खड़ी हो जाती हैं, ई रिक्शा, टेम्पो से लगाए बस तक वाहन सवारी भरती हैं, पूरे शहर का ट्राफिक बर्बाद हो जाता है। कोई नेशनल हाइवे हो और शहर से गुजरता हो तो बिलकुल उसी के सामने दुकानें, प्रतिष्ठान खोल दिया जाता है, कोई सरकारी अथारटी भी यह नियम नहीं बना रही की सड़क जो की किसी भी राष्ट्र की धमनी होती हैं उसे ऐसे ब्लॉक नहीं किया जा सकता। देश में बहुत बड़ी मूक क्रांति हुई, हाथ से चलने वाले रिक्शे मात्र सात आठ साल में समाप्त हो गये और उनका स्थान ई रिक्शे ने ले लिया लेकिन किसी भी संस्था संगठन पार्टी, सिविल सोसाइटी से लगाए आम नागरिकों तक को यह नहीं लगा कि वह इन लोगों को यह शऊर सिखाए कि सड़क पर कैसा व्यवहार करना है? चौराहे पर यह सैकड़ों की संख्या में खड़े होकर जाम न लगाए इसका इंतज़ाम हो। 

आज़ तक आम नागरिकों ने भी मुद्दा नहीं उठाया कि हर बड़े चौराहे के सौ मीटर दूरी पर सरकार ज़मीन अधिग्रहण करे और सवारी उठाने की अनुमति केवल वहीं रहें। पुराने से पुराने रेस्टोरेंट, मिठाई के दुकान, जूस के दुकान खुले हैं, चाय नाश्ते की दुकान हैं, लेकिन न ग्राहकों की यह माँग है कि वह साफ़ सुथरा हो, कालिख से मुक्त हो, मक्खी वहाँ न भीनके। फिर लोग कहते हैं कि विदेश के लोग भारत के खाने पीने की दुकानों का गंदा गंदा वीडियो बनाकर बदनाम करते हैं। वह बदनाम नहीं करते, केवल आईना दिखाते हैं। तमाम इंस्टाग्राम और रील के माध्यम से पुराने पुराने प्रतिष्ठानों के वीडियो आते हैं, वह सब रोज के लाख लाख रुपया कमाते हैं लेकिन कोई यह नहीं कहने वाला है की इतनी गंदगी क्यों फैलाए रहते हो? 

लोग घर बनवाते हैं लेकिन एक इंच ज़मीन नहीं छोड़ते फिर सड़क पर स्लोप बनवाते हैं कि गाड़ी चढ़ाने की व्यवस्था हो, पूरी बेशर्मी से इस क़ब्ज़ेबाज़ी को अपना अधिकार समझते हैं। अच्छे से अच्छे कालोनी में करोड़ों का घर बनता हैं लेकिन सामने नाला खुला रहता है और इन्हें उससे दिक्कत भी महसूस नहीं होती। यह जीवन की सामान्यता बनी हुई है। कुत्ता पाल लेंगे लेकिन उसे सुबह सुबह हगाने जायेंगे दूसरे के घर के सामने। भला हो मोदी जी का जिन्होंने कम से यहाँ के लोगों को हगना सीखा दिया वरना कई जगहों पर तो निकलना मुश्किल था। लोग गरीब हैं, मैं उनकी ग़रीबी से संवेदनशीलता रखता हूँ लेकिन इतना भी क्या बेसउर होना कि दो दो दिन बच्चों की नाक भी पानी से साफ़ नहीं करना? उनके कपड़े पाँच पाँच दिन एक ही पहना कर रखना? 

सड़क पर चलेंगे तो नियम नहीं मानना, नशा भी ऐसा सीखा की देखने मे भी गंदे दिखते हैं, फिर गुटखा खा खाकर सड़क, ऑफिस, घर से लगाये लिफ्ट तक गंदा करते है। उसके बाद बीमारी भी गंदी होती है। खाना खायेंगे तो बहुत जगह मक्खी भिनकते रहना सामान्यता बनी हुई है। घर बनवायेंगे तो बाथरूम और टॉयलेट इतने कम जगह में बनवायेंगे की मानो वह कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज नहीं है। कुल मिलाकर साफ़ सफ़ाई सबसे पीछे छूटा हुआ है। अच्छे कमाई करने वाले लोग भी अपने घर में एक एक बेडशीट, तकिये का कवर इतने इतने दिन तक इस्तेमाल करते हैं कि उसमें तेल की इतनी मोटी परत बन जाती है कि पूछिए ही नहीं। कूड़ा निकालेंगे तो घर के बाहर फेक देंगे। कार से चलते हुए प्लास्टिक, चिप्स की पन्नी कहीं भी फेंक देंगे। सुंदर से सुंदर तालाब हो, झील हो, झरना हो सब प्लास्टिक, बोतल आदि से भरे मिलते हैं। कोई सौंदर्य बोध नहीं, कोई रचनात्मकता नहीं। 

बिना सौंदर्य बोध, रचनात्मकता, व्यवस्थित रहने की चाह, सुंदरता के भारत के लोगों को कभी दुनिया में सम्मान नहीं मिल सकता, चाहे आपके पास कितना पैसा हो या कितनी बड़ी डिग्री हो। सिविक सेंस विहीन समाज कभी सम्मान नहीं पा सकता, इसलिए यह मुद्दा भी हमारे दृष्टि में होना चाहिए। इस विषय में हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम ने इसे कभी समस्या माना ही नहीं और हम गंदगी में रहना एक सामान्यता मान चुके हैं।


बुधवार, 6 अगस्त 2025

उत्तरकाशी का धराली.. सब कुछ अपनी गोद में समेट कर ले गई मां गंगा


  उत्तरकाशी का धराली.. सब कुछ अपनी गोद में समेट कर ले गई मां गंगा

उत्तरकाशी का धराली बता रहा है क‍ि चट्टानों पर बने जल प्रवाह के निशान चेतावनी देते हैं, '...बस यहीं तक, इसके आगे नहीं!" सदियों से हिन्दू समाज, प्रकृति पूजक समाज प्रकृति मां की चेतावनी को समझता आया। मर्यादा में रहा।

लेकिन जिन्होंने प्रकृति की चेतावनी नहीं सुनी। जल प्रवाह की गोद में घुस गए। बिल्डिंग, बाजार खड़े कर दिए। पर्यटन के बढ़ते असर ने आंख पर लालच की पट्टी बांध दी है। 

अब यह दलील नहीं चलेगी...आखिर #विकास तो होगा ही..:कहां जाएं लोग? रोजगार के लिए क्या करें?

मेरा निजी विश्वास है, #धर्म और #प्रकृति बहुत ही निर्मोही है..इन दोनों की शब्दवली में #दया_क्षमा नहीं है...धतकरम (पाप) किया है तो #दण्ड मिलेगा ही...हमें नहीं तो हमारी #भावी_संतति को। धर्म और प्रकृति को मानव की खड़ी की गई कोई बनावटी दलील स्वीकार नहीं।

#हिन्दू_धर्म अपनी व्यापकता में प्रकृति, ब्रह्मांड में #जीव_सहजीविता का ही अनुशासन है। यह व्यवस्था, यह दर्शन ही धर्म है। 

बुद्धि कपाट खोल कर देखों तो धर्म अत्यंत सहज...बुद्धि कपाट बंद तो धर्म अत्यंत दुरूह। अत्यंत जटिल।

#Uttarkashi

#धराली

शनिवार, 2 अगस्त 2025

आहुति देते समय बोला जाने वाला स‍िर्फ एक शब्द नहीं है स्वाहा, जान‍िए क्यों इसके बिना अधूरा होता है हवन


 हवन और यज्ञ पौराणिक काल से हिंदू संस्कृति का हिस्सा रहे हैं जिनका वर्णन हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। हवन में स्वाहा बोलने का भी विधान है। ऐसा कहा जाता है कि जब तक आहुत देते समय स्वाहा न बोला जाए तब तक देवी-देवता उस हवन सामग्री को स्वीकार नहीं करते। इसके पीछे कुछ धार्मिक कारण भी मिलते हैं।

हिंदू धर्म में हवन को विशेष महत्व दिया गया है। गृह प्रवेश, धार्मिक कार्य या फिर किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले हवन जरूरी रूप से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हवन करवाने से उस कार्य में व्यक्ति को देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्व रखता है, बल्कि इससे वातावरण भी शुद्ध होता है। हवन के दौरान आहुति देते समय स्वाहा जरूर बोला जाता है, जिसका एक बहुत ही खास महत्व है। चलिए जानते हैं इस शब्द का अर्थ और महत्व।

स्वाहा का अर्थ
जब हवन किया जाता है, तो यज्ञ के दौरान हवन कुंड में हवन की सामग्री अर्पित करते समय स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है, जिसका अर्थ है सही रीति से पहुंचाना। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अग्निदेव की पत्नी का नाम स्वाहा था, जो दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इसलिए हवन कुंड में आहुति देते समय हर मंत्र के उच्चारण के बाद स्वाहा कहा जाता है और यह माना जाता है कि इससे अग्नि देव प्रसन्न होते हैं।

स्वाहा शब्द का क्या महत्व है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हवन सामग्री का भोग अग्नि के जरिए देवताओं तक पहुंचाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब तक देवी-देवता हविष्य यानी हवन सामग्री को ग्रहण न कर लें, हवन या यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता। जब हविष्य को अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पित किया जाता है, तभी देवी-देवता इसे ग्रहण करते हैं।

यह भी है मान्यता
पुराणों में वर्णन मिलता है कि ऋग्वेद काल में अग्नि को देवता और मनुष्य के बीच के माध्यम के रूप में चुना गया था। इसलिए यह माना जाता है कि हवन के दौरान जो भी सामग्री स्वाहा के उच्चारण के साथ अग्नि देव को अर्पित की जाती है वह सीधे देवताओं तक पहुंचती है और जिस भी मंशा से वह हवन किया जा रहा है, वह पूर्ण होती है।

दंतकथाएं
स्वाहा को एक देवी और अग्नि की पत्नी के रूप में चित्रित किया गया है। ब्रह्मविद्या उपनिषद के अनुसार स्वाहा उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसे अग्नि जला नहीं सकती। उपनिषदों में स्वाहा अग्नि पर मोहित होने और उनके साथ रहने की इच्छा व्यक्त करती हैं। इसलिए, देवताओं ने कहा है कि स्तुति के दौरान उनका नाम लेते हुए अग्नि को आहुति दी जानी चाहिए, जिससे स्वाहा सदैव अग्नि के साथ रह सकें।

कुछ संस्करणों में, वह कार्तिकेय (स्कंद) की अनेक दिव्य माताओं में से एक हैं । वह अग्नि की पुत्री, आग्नेय (आग्नेय) की भी माता हैं। उन्हें दक्ष और उनकी पत्नी प्रसूति की पुत्री माना जाता है । उन्हें होमबलि की अधिष्ठात्री माना जाता है। कहा जाता है कि उनके शरीर में चार वेद समाहित हैं और उनके छह अंगों को वेदों के छह अंग माना जाता है।

कहानी
महाभारत वन पर्व में मार्कण्डेय पांडवों को अपनी कहानी सुनाते हैं । स्वाहा दक्ष की पुत्री थीं । वह अग्निदेव से प्रेम करने लगीं और उनका पीछा करने लगीं। अग्निदेव ने उन पर ध्यान नहीं दिया। अग्निदेव सप्तऋषियों के यज्ञ अनुष्ठानों के अध्यक्ष थे । देवता सप्तऋषियों की पत्नियों पर अत्यधिक मोहित हो गए, जो इतनी आकर्षक थीं कि वह उन्हें देखते ही रह गए।

अंततः अग्नि पराई स्त्री की लालसा का अपराध बोध सहन नहीं कर सके और तपस्या करने वन में चले गए। स्वाहा उनके पीछे-पीछे गईं और उनकी इच्छा समझ गईं। उन्होंने सप्तर्षियों की पत्नियों का रूप धारण किया (हालाँकि वे वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति का रूप धारण नहीं कर सकीं) और अग्नि के पास छह बार गईं, उन्हें मोहित किया और प्रत्येक मिलन का बीज एक स्वर्ण कलश में डाला, जिससे स्कंद का जन्म हुआ।

ब्रह्माण्ड पुराण में स्वाहा के बच्चों के नामों का उल्लेख है: पवमान, पावक और शुचि।

देवी भागवत पुराण में नारायण नारद को स्वाहा का ध्यान करने की विधि प्रदान करते हैं :

स्वाहा देवी का ध्यान इस प्रकार है:-- हे देवी स्वाहा! आप मंत्रों से परिपूर्ण हैं; आप मंत्रों की सिद्धि हैं; आप स्वयं सिद्धा हैं; आप मनुष्यों को सिद्धि और कर्मफल प्रदान करती हैं; आप सबका कल्याण करती हैं। इस प्रकार ध्यान करते हुए, मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए पाद्य (पैर धोने का जल) आदि अर्पित करना चाहिए; तब उसे सिद्धि प्राप्त होती है। अब मूल बीज मंत्र के बारे में सुनो। उक्त मंत्र (मूल मंत्र) यह है:-- "ॐ ह्रीं श्रीं वह्निजयायै देव्यै स्वाहा।" यदि इस मंत्र से देवी की पूजा की जाए, तो सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

-  देवी भागवत पुराण , पुस्तक 9, अध्याय 43

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

रत्ती: आश्चर्य में डालता है मापतौल की इकाई का सामाज‍िक ताने बाने में बुन जाना

"रत्ती "यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नहीं...!!

आपने भी इस शब्द को बोला होगा, बहुत लोगों से सुना भी होगा। आज जानते हैं 'रत्ती' की वास्तविकता, यह आम बोलचाल में आया कैसे?

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक प्रकार का पौधा होता है, जो प्रायः पहाड़ों पर पाया जाता है। इसके मटर जैसी फली में लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है। रत्ती या गुंजा या घुंघुची या करजनी एक बेल है , जो प्राकृतिक रूप से उगती है। इसका वैज्ञानिक नाम Abrus precatoriusहै। यह छोटे पौधों के तनों से लिपटी रहती है ।


 इस लता के पत्ते इमली के पत्तों की भांति होती हैं | शरद काल के कुछ पहले ही यह लता सूख जाती है | इसकी सूखी फलियों से छोटे छोटे मोतियों की भांति आधे लाल और आधे काले रंग के बीज मिलते हैं। कभी - कभी सफ़ेद रंग की रत्ती या सिर्फ काले रंग की भी रत्ती मिलती है | 


हमारे ब्रज में रत्ती के पौधे को आम भाषा में 'गूंजा'  भी कहा जाता है, ब्रज चौरासी कोस की यात्रा में अरावली पर्वत के भाग कामवन के जंगलों में इसे देखा जाता है, रास के दौरान भगवान कृष्ण अकसर गुंजा की माला अपनी सख‍ियों के ल‍िए बनाया करते थे। 

प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था।


 सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है।

तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से, कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द।

रत्ती भर मतलब जरा सा । 

अक्सर लोग दाल या सब्जी में ऊपर से नमक डालते रहते हैं । पुराने समय में माँग हुआ करती थी - - रत्ती भर नमक देना । रत्ती भर का मतलब जरा सा होता है । अब रत्ती भर कोई नहीं बोलता । सभी जरा सा हीं बोलते हैं , लेकिन रत्ती भर पर आज भी मुहावरे प्रचलित हैं । "रत्ती भर" का वाक्यों में प्रयोग के कुछ नमूने देखिए -- 

1)तुम्हें तो रत्ती भर भी शर्म नहीं है । 

2)रत्ती भर किया गया सत्कर्म एक मन पुण्य के बराबर होता है.

3) इस घर में हमारी रत्ती भर भी मूल्य नहीं है ।

कुछ लोग" रत्ती भर " भी झूठ नहीं बोलते । 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस रत्ती की बात यहाँ हो रही है , वह माप की एक ईकाई है । यह माप सुनार इस्तेमाल करते हैं । पुराने जमाने जो माप तौल पढ़े हैं , उनमें रत्ती का भी नाम शामिल है । विस्तृत वर्णन इस प्रकार है -

8 खसखस = 1 चावल,

8 चावल = 1 रत्ती 

8 रत्ती = 1 माशा

4 माशा =1 टंक 

12 माशा = 1 तोला

5 तोला= 1 छटाँक 

16 छटाँक= 1 सेर 

5 सेर= 1 पंसेरी 

8 पंसेरी= एक मन 

हाँलाकि उपरोक्त माप अब कालातीत हो गये हैं , पर आज भी रत्ती और तोला स्वर्णकारों के पास चल रहे हैं । 1 रत्ती का मतलब 0.125 ग्राम होता है । 11.66 ग्राम 1 तोले के बराबर होता है । आजकल एक तोला 10 ग्राम होता है ।

इन सभी माप में रत्ती अधिक प्रसिद्ध हुई, क्योंकि यह प्राकृतिक रुप से पायी जाती है। रत्ती को कृष्णला, और रक्तकाकचिंची के नाम से भी जानी जाता है। रत्ती का पौधा पहाड़ों में पाया जाता है । इसे स्थानीय भाषा में गुंजा कहते है ।

मुंह के छालों को भी करता है ठीक

ऐसा माना जाता है कि अगर आप रत्ती के पत्ते को चबाना शुरू करें तो मुंह में होने वाले सारे छाले ठीक हो जाते हैं। साथ ही साथ इस के जड़ को भी सेहत के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। आपने कई लोगों को’ रत्ती’, ‘ गूंजा’ पहनते हुए भी देखा होगा। कुछ लोग अंगूठी बनवा देते हैं तो कुछ लोग माला बनाकर इसे पहनते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह एक सकारात्मक ऊर्जा को उत्पन्न करता है जो क‍ि बहुत ही अच्छी बात है।

रत्ती के बीज लाल होते हैं , जिसका ऊपरी सिरा काला होता है । सफेद रंग के भी बीज होते हैं , जिनके ऊपरी सिरे भी काले होते हैं । यह बीज छोटा बड़ा नहीं होता , बल्कि एक माप व एक आकार का होता है । प्रत्येक बीज का वजन एकसमान होता है । इसे आप कुदरत का करिश्मा भी कह सकते हैं । 

रत्ती के इस प्राकृतिक गुण के कारण स्वर्णकार इसे माप के रुप में पहले इस्तेमाल करते थे , शायद आजकल भी करते होंगे ।

रत्ती का उपयोग पशुओं के घावों में उत्पन्न कीड़ों मारने के लिए किया जाता है । यह खुराक के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक खुराक में अधिकतम दो बीज हीं दिए जाते हैं।दो खुराक दिए जाने पर घाव ठीक हो जाता है।

रत्ती के बीज जहरीले होते हैं । इसलिए ये खाए नहीं जाते । इनकी माला बनाकर माएँ अपने बच्चों को पहनाती हैं । ऐसी मान्यता है कि इसकी माला बच्चों को बुरी नज़रों से बचाती है।

शुक्रवार, 16 मई 2025

इस युद्धक माहौल में एक कहानी ये भी---


आप भी पढ़ें यह संवाद जो क‍ि किताब- 1971: charge of Gorkhas and other stories में दर्ज है। उस युद्ध के बारे में भारतीय सैनिकों के शौर्य की अद्भुत कहानियां हैं इस किताब में।


 1971 के युद्ध में गोरखा राइफल्स के एक कर्नल ने अपने दो युवा साथियों से कहा-अटैक करना है, सुसाइडल है, फ्रंट पर तुम दोनों में से कोई एक ही रहेगा। तुम दोनों में से कौन तैयार है? एक ने कहा- जान की बाजी लगानी है तो मैं फ्रंट टीम में रहूंगा सर। 

बहुत समझाने पर पहला वाला तैयार हुआ कि फ्रंट अटैक में वो नहीं रहेगा। पीछे वाली टीम में रहेगा। दूसरे वाले ने पाकिस्तानी चौकी पर हमले से पहले सिर मुंडा लिया। क्यों मुंडाया, ये किसी को आजतक नहीं पता चल पाया। क्योंकि उस हमले में उनकी शहादत हुई। मौत से पहले कई पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काटी थी उस महावीर ने। उस हमले में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी दौड़ा-दौड़ा कर मारा था।

जब जंग खत्म हुई तो पहला वाला, दूसरे वाले के घर गया। बरेली में। मां ने कहा-मेरा बेटा हमेशा तुम्हारा नाम लेता था। कहता था कि वो मेरे लिए जान की बाजी लगा सकता है। अब मेरा बेटा नहीं है तो तुम ही मेरे बेटे हो।

पहले वाले का नाम था- कैप्टन हिमकार वल्लभ पांडेय (25 साल)

दूसरे वाले का नाम था- कैप्टन प्रवीण कुमार जौहरी (सेना मेडल, मरणोपरांत)-23 साल

कर्नल थे श्याम केलकर।

...हम खुशकिस्मत हैं कि ऐसी सेना है हमारे पास। जय हिंद की सेना।

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

अक्षय तृतीया पर कांची कामकोटि पीठम में एक नए युग की शुरुआत

 




अक्षय तृतीया पर कांची में एक नए युग की शुरुआत, इसके वेद, विद्या और वैद्य सेवाओं ने पिछली शताब्दी में भारत के विकास के विभिन्न आयामों को बदल दिया है। आदि शंकर द्वारा स्थापित 2,500 से अधिक वर्ष पुराने मठ, कांची कामकोटि पीठम में उत्सवों का माहौल है। पीठम के 71वें शंकराचार्य का अभिषेक मठ की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण है। 


70वें शंकराचार्य श्री शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल के शिष्य, इस अखंड वंश में मठ के 71वें शंकराचार्य होंगे। 


आज सुबह कामाक्षी मंदिर में कांची मठ के शिष्य स्वेकार समारोह में वर्तमान आचार्य शंकर विजयेंद्र सरस्वती स्वामी ने पीठम के लिए 71वें आचार्य का अभिषेक किया और नए आचार्य का नाम #सत्य_चंद्रशेखरेंद्र_सरस्वती रखा।


नए आचार्य को उनके गुरु विजयेंद्र सरस्वती ने दंड दिया।

#Kanchi #KanchiKamakotiPeetam #SatyaChandrasekharendraSaraswathi

आखिर इस देश में चल क्या रहा है?

 

सोचिए इस देश में तंत्र कितना सड़ा हुआ है। पाकिस्तानी महिलाएं यहां आकर शादी करके बस जा रही हैं। एक पाकिस्तानी महिला CRPF के जवान से शादी करती है। एक पाकिस्तानी है जिसके पास यहां का वोटर ID, आधार कार्ड, राशन कार्ड सब है। कुछ पाकिस्तानी यहां आए थे क्रिकेट देखने यहीं रह गए।


ये सब लिस्ट उनकी है जो डॉक्यूमेंटेड रूप से आएं हैं जिनका सरकार के पास रिकॉर्ड है! उनका क्या जो अवैध रूप से घुसे हैं और जिनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं है इधर। इतने पाकिस्तानी है, बांग्लादेशी भी होंगे, रोहिंग्या भी। जिन 80 करोड़ लोगों को राशन दिया जा रहा था उनमें से ये कितने है वो भी पता लगाना पड़ेगा।


आखिर इस देश में चल क्या रहा है? कोई नियम है या नहीं? ये देश धर्मशाला बन गया है क्या? सरकार इतने दिनों तक क्या कर रही थी? आने जाने वालों को ट्रैक क्यों नहीं किया गया? इन्हें ढूंढ कर वापस क्यों नहीं भेजा गया? लोग 20-20 साल से यहां रह रहे हैं। कोई खबर नहीं किसी को। अगर ये दुर्घटना न होती तो शायद हमें इसका पता भी नहीं चलता।


सोचिए जो 2011 से पहले इस देश में आए होंगे उनको तो जनसंख्या में भी गिना गया होगा। कई ऐसे होंगे जो नौकरी कर रहे होंगे। जिनके पास जमीनें होंगी। सरकार को इन सबको तुरंत वापस भेजना चाहिए, इनके नाम पर जो संपति है उसे जब्त करना चाहिए और इसी तर्ज पर बांग्लादेशियों के लिए भी अभियान चलाइए। ये बहुत घातक हैं, ये सब कैंसर सेल हैं।